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ठोस आहार शुरू करने पर बच्चों को अक्सर दूध में बिस्कुट डालकर खिलाया जाता है। बिस्कुट खिलाना आसान होता है और इसे बनाने में ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती है। बच्चे आसानी से दूध और बिस्कुट को पचा लेते हैं और उन्हें इसका स्वाद भी अच्छा लगता है।
हालांकि, आपको यह समझना चाहिए कि बच्चे को सभी बिस्कुट खिलाना सही नहीं होता है और इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं।
बिस्कुट खिलाने के नुकसान
बिस्कुट प्रोसेस्ड होते हैं। इनमें बीएचए और बीएचटी जैसे प्रिजर्वेटिव्स होते हैं और बेकिंग सोडा और ग्लाइसेरोल मोनोस्टिरेट एवं फलेवरिंग एजेंट होते हैं। इनमें रिफाइंड व्हीट फलोर, ट्रांस फैट, एडिटिव्स और अन्य सिंथेटिक तत्व भी मिलाए जाते हैं। यही वजह है कि ठोस आहार शुरू करने पर शिशु के लिए बिस्कुट हेल्दी विकल्प नहीं होते हैं। इनमें मौजूद तत्व शिशु के लिए खतरनाक होते हैं और पाचन संबंधी समस्याएं जैसे कि कब्ज पैदा कर सकते हैं।
शिशु को ग्राइप वॉटर देना कितना सुरक्षित है
शिशु में कोलिक के लक्षणों से राहत दिलाने के लिए डॉक्टर के पर्चे के बिना कई प्रोडक्ट मिलते हैं। आपको इनमें से वही विकल्प चुनना चाहिए जो सुरक्षित हो। ग्राइप वॉटर लिक्विड रूप में आता है और यह एक हर्बल उपाय है। इसमें सौंफ, अदरक, कैमोमाइल, मुलेठी, दालचीनी और लेमन बाम होता है।
गैस होने पर पेट दर्द की वजह से बच्चे ज्यादा रोते हैं। कुछ बच्चे दिन में लगातार कई घंटों तक रोते हैं तो कुछ में यह समस्या कई सप्ताह तक देखी जा सकती है। चूंकि, जड़ी-बूटियां पाचन में मदद करती हैं इसलिए ग्राइप वॉटर का इस्तेमाल कोलिक से राहत पाने के लिए किया जा सकता है। दांत आने पर दर्द होने और हिचकी के लिए भी ग्राइप वॉटर का इस्तेमाल किया जाता है।
कई तरह के ग्राइप वॉटर होते हैं। शुगर और एल्कोहल युक्त ग्राइप वॉटर भी आता है। बहुत ज्यादा शुगर की वजह से दांतों में कीड़ा लग सकता है और इससे शिशु के दूध पीने में भी बदलाव आ सकता है।
आप ऐसे ग्राइप वॉटर को चुनें जो शिशु के लिए सुरक्षित हों। पैकेट पर लिखी गई सामग्रियों को अच्छी तरह से पढ़ने के बाद ही खरीदें। आप सोडियम बायोकार्बोनेट और पुदीना युक्त ग्राइप वॉटर भी दे सकते हैं।
सोडियम बायोकार्बोनेट या बेकिंग सोडा डॉक्टर की सलाह के बिना कोलिक बेबी को नहीं देना चाहिए। इससे शिशु के पेट में पीएच लेवल पर असर पड़ सकता है और शिशु में कोलिक के लक्षण गंभीर हो सकते हैं।
पुदीना युक्त ग्राइप वॉटर शिशु में रिफलक्स के लक्षणों को बढ़ा सकता है। ग्लूटेन, डेयरी, पैराबींस और वेजिटेबल कार्बन युक्त ग्राइप वॉटर देने से भी बचना चाहिए।
आमतौर पर ग्राइप वॉटर शिशु के लिए सुरक्षित होता है लेकिन एक महीने से कम उम्र के शिशु को इसकी सलाह नहीं दी जाती है। इस उम्र तक शिशु के पाचन तंत्र का विकास हो रहा होता है।
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ग्राइप वॉटर के उत्पादक यह दावा करते हैं दो सप्ताह तक के शिशु को ग्राइप वॉटर दिया जा सकता है। हालांकि, एक महीने के होने तक शिशु को ग्राइप वॉटर नहीं देना चाहिए। कई लोगों का यह भी मानना है कि छह महीने तक के शिशु को ब्रेस्ट मिल्क या फॉर्मूला मिल्क ही देना चाहिए।
इसलिए बेहतर होगा कि शिशु को ग्राइप वॉटर देने से पहले पीडियाट्रिशियन से बात कर लें। दूध पिलाने के लगभग दस मिनट बाद शिशु को ग्राइप वॉटर देना सही रहता है। आप चम्मच या ड्रॉपर से ग्राइप वॉटर दे सकती हैं।
अधिक शुगर की मात्रा
बाजार में मिलने वाले बिस्कुटों में उच्च मात्रा में रिफाइंड शुगर होती है जिससे इनमें अच्छा स्वाद आता है। हालांकि, बच्चों को इसकी वजह से अधिक मीठा खाने की आदत लग सकती है जो कि सही नहीं है। बिस्कुट बनाने में जिस शुगर का इस्तेमाल होता है वो रेगुलर ग्लूकोज से ज्यादा मीठी होती है और इसके कारण बच्चे को कम उम्र में ही डायबिटीज और मोटापा हो सकता है।
एलर्जी
बिस्कुट में ग्लूटेन और सोया लेसिथिन होता है। ये तत्व बच्चों में रैशेज, खांसी, जुकाम या फेफड़ोंमें सूजन पैदा कर सकते हैं। बिस्कुट से बच्चे में इस तरह के एलर्जिक प्रभाव देखे जा सकते हैं।
कैलोरी नहीं होती
भले ही बिस्कुट खाने से बच्चों की भूख शांत होती हो लेकिन इनमें नाम मात्र कैलोरी होती है। इसका मतलब है कि बच्चों को बिस्कुट से कोई पोषण नहीं मिलता है। मार्केट में बिकने वाले बिस्कुटों को आप बच्चे के लिए जंक फूड कह सकते हैं। इनसे एनर्जी तो मिलती है लेकिन पोषण के मामले में ये जीरो होते हैं।
शिशु को ग्राइप वॉटर देना कितना सुरक्षित है
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शिशु में कोलिक के लक्षणों से राहत दिलाने के लिए डॉक्टर के पर्चे के बिना कई प्रोडक्ट मिलते हैं। आपको इनमें से वही विकल्प चुनना चाहिए जो सुरक्षित हो। ग्राइप वॉटर लिक्विड रूप में आता है और यह एक हर्बल उपाय है। इसमें सौंफ, अदरक, कैमोमाइल, मुलेठी, दालचीनी और लेमन बाम होता है।
गैस होने पर पेट दर्द की वजह से बच्चे ज्यादा रोते हैं। कुछ बच्चे दिन में लगातार कई घंटों तक रोते हैं तो कुछ में यह समस्या कई सप्ताह तक देखी जा सकती है। चूंकि, जड़ी-बूटियां पाचन में मदद करती हैं इसलिए ग्राइप वॉटर का इस्तेमाल कोलिक से राहत पाने के लिए किया जा सकता है। दांत आने पर दर्द होने और हिचकी के लिए भी ग्राइप वॉटर का इस्तेमाल किया जाता है।
कई तरह के ग्राइप वॉटर होते हैं। शुगर और एल्कोहल युक्त ग्राइप वॉटर भी आता है। बहुत ज्यादा शुगर की वजह से दांतों में कीड़ा लग सकता है और इससे शिशु के दूध पीने में भी बदलाव आ सकता है।
आप ऐसे ग्राइप वॉटर को चुनें जो शिशु के लिए सुरक्षित हों। पैकेट पर लिखी गई सामग्रियों को अच्छी तरह से पढ़ने के बाद ही खरीदें। आप सोडियम बायोकार्बोनेट और पुदीना युक्त ग्राइप वॉटर भी दे सकते हैं।
सोडियम बायोकार्बोनेट या बेकिंग सोडा डॉक्टर की सलाह के बिना कोलिक बेबी को नहीं देना चाहिए। इससे शिशु के पेट में पीएच लेवल पर असर पड़ सकता है और शिशु में कोलिक के लक्षण गंभीर हो सकते हैं।
पुदीना युक्त ग्राइप वॉटर शिशु में रिफलक्स के लक्षणों को बढ़ा सकता है। ग्लूटेन, डेयरी, पैराबींस और वेजिटेबल कार्बन युक्त ग्राइप वॉटर देने से भी बचना चाहिए।
आमतौर पर ग्राइप वॉटर शिशु के लिए सुरक्षित होता है लेकिन एक महीने से कम उम्र के शिशु को इसकी सलाह नहीं दी जाती है। इस उम्र तक शिशु के पाचन तंत्र का विकास हो रहा होता है।
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ग्राइप वॉटर के उत्पादक यह दावा करते हैं दो सप्ताह तक के शिशु को ग्राइप वॉटर दिया जा सकता है। हालांकि, एक महीने के होने तक शिशु को ग्राइप वॉटर नहीं देना चाहिए। कई लोगों का यह भी मानना है कि छह महीने तक के शिशु को ब्रेस्ट मिल्क या फॉर्मूला मिल्क ही देना चाहिए।
इसलिए बेहतर होगा कि शिशु को ग्राइप वॉटर देने से पहले पीडियाट्रिशियन से बात कर लें। दूध पिलाने के लगभग दस मिनट बाद शिशु को ग्राइप वॉटर देना सही रहता है। आप चम्मच या ड्रॉपर से ग्राइप वॉटर दे सकती हैं।
ट्रांस फैट होता है
ट्रांस फैट एक प्रकार का फैट होता है जिसका इस्तेमाल प्रोसेस्ड फूड के फलेवर और स्वाद को बनाए रखने के लिए किया जाता है। इनमें न केवल पोषण की कमी होती है बल्कि इनके कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं। इसकी वजह से शरीर में गुड और बैड कोलेस्ट्रोल में असंतुलन आ सकता है। ट्रांस फैट की वजह से नजर कमजोर होने, नसों से संबंधित विकारों, एलर्जी, डायबिटीज और मोटापा हो सकता है। कई ब्रांड बिस्कुट के पैकेट पर लिखते हैं कि उनमें कोई ट्रांस फैट नहीं है लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है।
कौन से बिस्कुट होते हैं खराब
सभी बिस्कुट शिशु के लिए खराब नहीं होते हैं। यहां तक कि आप बच्चों के लिए घर पर भी हेल्दी बिस्कुट बना सकती हैं। इस तरह आप शुगर की मात्रा को भी कंट्रोल कर सकते हैं और इनमें किसी भी तरह के प्रिजर्वेटिव्स या सिंथेटिव तत्व के प्रयोग से भी बचा जा सकता है। आप रागी, बेसन, होल व्हीट आटे, ओट्स, मीठे के लिए खजूर का सिरप, गुड, घी, बादाम पाउडर और घी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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