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फ्रोजन भ्रूण प्रत्यारोपण (ब्लास्टोसिस्ट) प्रक्रिया
ब्लास्टोसिस्ट कल्चर या फ्रोजन भ्रूण प्रत्यारोपण प्रक्रिया में भ्रूण तैयार करने के बाद उसी साइकल में प्रत्यारोपण करते है और उसे पाँच दिन एक विशेष तरल पदार्थ में रखा जाता है|
किसी ने ठीक ही कहा है जब भी मैं अपनी छोटी परछाई को देखता हूँ तो मेरा बचपन लौट आता है और उसे हँसते खेलते देख मैं अपने सरे दुःख भूल जाता हूँ। आधुनिक युग में माता पिता बनना किसी सपने से कम नहीं है क्योकि वक़्त के साथ निसंतानता भी बढ़ती जा रही है। लेकिन साथ हमारी आईवीएफ की प्रक्रियाओ में भी आधुनिकता आ रही है। और हम निसंतानता और मातृत्व सुख के बीच की दिवार को हटाने में कामियाब हो रहे है।
आधुनिक तकनीकों में से एक है “ब्लास्टोसिस्ट कल्चर”। विधि में महिला व पुरुष से अण्डा व शुक्राणु निकाल कर भ्रूण तैयार किया जाता है और उसे पाँच दिन एक विशेष तरल पदार्थ में रखा जाता है क्योकि पाँचवे दिन के भ्रूण में चिपकने की क्षमता दूसरे व तिसरे दिन भ्रूण से कई गुना ज्यादा व बेहतर है।
पूर्व में आईवीएफ में दूसरे या तीसरे भ्रूण बच्चेदानी में रखते थे, प्रेगनेंसी रेट बहुत कम होती थी तथा बच्चा गिरने की सम्भावना काफी ज्यादा थी। मगर इस तकनीक से सर्वश्रेष्ठ भ्रूण के चयन मौका मिलता है, क्योकि यह तकनीक सबसे शक्तिशाली जीवित रहने धारण पर आधारित है।
इस प्रक्रिया में पाँचवे दिन का भ्रूण गर्भाशय में सामान्य रूप से प्रत्यारोपित कर दिया जाता है
फ्रोजन भ्रूण प्रत्यारोपण: –
यह भी आधुनिक है, जिसने आईवीएफ सफलता ओर बढ़ा दिया है। जब भ्रूण तैयार करने के बाद उसी साइकल में प्रत्यारोण करते है तो फ्रेश भ्रूण प्रत्यारोपण या फ्रेश एम्ब्रयो ट्रांसफर कहते है। जबकि फ्रोजन तकनीक में भ्रूण को फ्रिज कर दिया जाता है तथा अगली साइकल या जब दंपत्ति चाहता है, तब ट्रान्सफर जाता है।
तकनीक से तैयार भ्रूण को ठंडा किया जाता है तथा ट्रान्सफर से पूर्व गरम कर पुनः जीवित किया है। पूर्व में जब यह तकनीक नहीं थी, तब तीसरे दिन का भ्रूण उसी साइकल में प्रत्यारोपित किया जाता था, सफलता दर 30 – 40 % ही थी। तथा प्रेगनेंसी में कॉम्प्लिकेशन अधिक थी।
ऐसा मन जाता है, की जब आईवीएफ की प्रक्रिया शुरू होती है तब महिला को अधिक अण्डा बनाने के लिए इंजेक्शन लगते है ताकि अच्छे भ्रूण मिल सके। तब महिला के शरीर में हार्मोन लेवल नोर्मल से ज्यादा हो जाते है, इसलिए अगर उसी साइकल में भ्रूण ट्रान्सफर किया जाये तो बच्चा लगने की संभावनाये बहुत कम होती है। इसलिए पाँचवे दिन के भ्रूण को फ्रिज कर लेते है तथा अगली साइकल में जब महिला को माहवारी आ जाती है तब हार्मोन स्तर सामान्य हो जाते है। तब जैसा की प्राकृतिक साइकल में होता है, एक अच्छे बच्चेदानी की परत तैयार हो जाती है, तब भ्रूण प्रत्यारोपण कर दिया जाता है ताकि वह अच्छी जड़ जमा सके।
इस तकनीक से 70% प्रेगनेंसी रेट मिलने लगे है तथा बच्चा गिरने की संभावना भी कम हो गयी है। इसके अलावा भी इस तकनीक के अनेक फायदे है। जब भी किसी हाई रिस्क दंपत्ति के भ्रूण का DNA टेस्ट करना होता है तो हमारे पास समय होता है क्योकि भ्रूण सुरक्षित रखे है। इसके अलावा जब कभी अधिक अण्डे किसी महिला में बन जाते है तो उसे OHSS की संभावना बढ़ जाती है। इसमें ज्यादा अण्डे बनने की वजह से महिला की छाती और पेट में पानी भर जाता है, जिससे स्वास लेने में तकलीफ होती है। यह रिस्क PCOD महिला में ज्यादा होता है। मगर इस तकनीक से यह समस्या भी कम हो गयी है। इसके अलावा अगर दंपत्ति चाहे तो उसी फ्रोजन भ्रूण से दूसरी प्रेगनेंसी के लिए इस्तेमाल कर सकता है। इसलिए आधुनिक युग में ब्लास्टोसिस्ट कल्चर तथा फ्रोजन भ्रूण प्रत्यारोपण किया जाता है। इन तकनीकों से सफलता दर 75 – 80% है।
धन्यवाद।
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