मेरा बच्चा रात में क्यों लात मारता है?pregnancytips.in

Posted on Wed 12th Oct 2022 : 15:46

रात के समय ज्‍यादा किक क्‍यों मारते हैं गर्भस्‍थ शिशु

गर्भस्‍थ शिशु का किक मारना मां को उसके अस्तित्‍व और स्‍वस्‍थ होने का एहसास दिलाता है। कई बच्‍चे रात के समय ज्‍यादा कि‍क मारते हैं।

गर्भावस्‍था के दौरान शिशु की मूवमेंट और किक मारने से ही प्रेगनेंट मां बच्‍चे के स्‍वस्‍थ और सुरक्षित होने का अंदाजा लगा लेती हैं। जब बच्‍चा किक मारता है तो मां के चेहरे पर खुशी आ जाती है। वैसे आमतौर पर शिशु गर्भ में अधिकतर समय सोता रहता है।


32 सप्‍ताह का होने पर भ्रूण आवाज सुनने लगता है और यादें भी बनाने लगता है। इस समय वह गर्भ में मूव भी करता है लेकिन 90 से 95 फीसदी समय सोता रहता है। कई गर्भवती महिलाओं का कहना है कि उनका शिशु रात के समय ज्‍यादा किक और मूवमेंट करता है।


अधिकतर महिलाओं को सबसे पहले शिशु की मूवमेंट प्रेग्‍नेंसी के 14वें हफ्ते से गर्भावस्‍था के 26वें हफ्ते के बीच महसूस होती है लेकिन 18वें हफ्ते से 22वें हफ्ते में इसके होने की संभावना अधिक होती है।

इस मामले में प्‍लेसेंटा की पोजीशन अहम भूमिका निभाती है। आइए जानते हैं कि ऐसा क्‍यों होता है और गर्भ में शिशु किस समय सबसे ज्‍यादा एक्टिव होता है।
प्रेग्‍नेंसी में हंसने से मां और बच्‍चे दोनों को मिलते हैं अनगिनत फायदे

प्रेग्‍नेंसी हार्मोंस के कारण प्रेगनेंट महिला को अचानक दुख और डिप्रेशन महसूस हो सकता है। प्रेग्‍नेंसी में दवाओं का सेवन कम से कम करना चाहिए। इसकी बजाय आप कॉमेडी और मजाकिया शोज देखकर या चुटकुले सुनकर हंस सकती हैं। इससे मूड भी ठीक रहता है और धीरे-धीरे डिप्रेशन के लक्षणों में भी कमी आती है।
जब भी आप अल्‍ट्रासाउंड के लिए जाती हैं तो जरा हंसकर देखें कि आपका शिशु कैसी प्रतिक्रिया देता है। जब मां प्रेग्‍नेंसी में खुश और उत्‍साह से परिपूर्ण रहती है तो बच्‍चा ज्‍यादा एक्टिव रहता है और उसका विकास भी बेहतर होता है।
ऐसे कई कारक हैं जो प्रीमैच्‍योर डिलीवरी का कारण बनते हैं और जब मां की इम्‍युनिटी कमजोर हो तो इसका खतरा और बढ़ जाता है। इम्‍युनिटी कमजोर होने पर वायरस, बैक्‍टीरिया आदि आसानी से प्रभावित करते हैं और इसका बुरा असर मां एवं बच्‍चे दोनों पर पड़ता है।

इंफेक्‍शन से मां से ज्‍यादा शिशु को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। इसकी वजह से बच्‍चे का नौ महीने से पहले जन्‍म या कोई जन्‍म विकार हो सकता है।

अगर आप इंटेलेजेंट बच्‍चा चाहती हैं तो प्रेग्‍नेंसी में वो सब काम करें जिससे शिशु के मस्तिष्‍क के विकास में मदद कर सके। डायट के अलावा मां का खुश रहना भी शिशु के विकास के लिए जरूरी होता है। इससे गर्भस्‍थ शिशु के मूवमेंट पर तो असर पड़ता ही है साथ ही दिमाग की कोशिकाओं का भी विकास होता है।


गर्भावस्‍था में मॉर्निंग सिकनेस, कमर दर्द, ऐंठन, पैरों में सूजन और गर्भावस्‍था में सिरदर्द होता है। हंसने से आपका ध्‍यान दर्द से हटता है और शरीर में कुछ ऐसे केमिकल रिलीज होते हैं जो नैचुरल पेन किलर यानी दर्द निवारक का काम करते हैं।

प्रेग्‍नेंसी में हाई ब्‍लड प्रेशर सबसे ज्‍यादा खतरनाक होता है और इससे जल्‍दी प्री-क्‍लैंप्‍सिया एवं कई तरह की समस्‍याएं हो सकती हैं। प्रीमैच्‍योर डिलीवरी भी हो सकती है या फिर स्थिति ज्‍यादा बिगड़ने पर सिजेरियन डिलीवरी करवाने की जरूरत पड़ सकती है। खुश रह कर और रोज हंसने से तनाव में कमी आती है जिससे ब्‍लड प्रेशर कंट्रोल में और शरीर स्‍वस्‍थ रहता है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि हंसने से प्रेगनेंट मां की इम्‍युनिटी भी बढ़ती है। हंसने से शरीर में तनाव कम होता है जिससे इम्‍युन सिस्‍टम को स्‍वस्‍थ रखने वाले हार्मोंस और केमिकल्‍स सक्रिय हो जाते हैं। इस तरह आप किसी सप्‍लीमेंट या दवा के बिना ही हंसकर प्रेग्‍नेंसी में स्‍वस्‍थ और बीमारियों से दूर रह सकती हैं।
रात में ज्‍यादा किक क्‍यों मारता है बच्‍चा
अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन द्वारा करवाई गई एक स्‍टडी में सामने आया कि कुछ बच्‍चे नॉकटरनल (Nocturnal) होते हैं और इसी वजह से वो रात के समय ज्‍यादा एक्टिव रहते हैं। नॉक्‍टरनल का मतलब होता है रात में ज्‍यादा सक्रिय रहना।

यदि बच्‍चे को गुस्‍सा आए या वो किसी बात से चिढ़ जाए तो ऐसे में आपको तेज किक महसूस हो सकती है। शिशु को गर्भ में जगह कम पड़ने या असहज महसूस होने के कारण ऐसा हो सकता है।
डॉक्‍टरों का मानना है कि जैसे-जैसे शिशु गर्भ में बढ़ता है, वैसे-वैसे उसे आसपास की चीजों का पता चलने लगता है। रात के समय शिशु का ज्‍यादा एक्टिव रहना चिंता की बात नहीं है।
प्रेग्‍नेंसी में हंसने से मां और बच्‍चे दोनों को मिलते हैं अनगिनत फायदे
प्रेग्‍नेंसी हार्मोंस के कारण प्रेगनेंट महिला को अचानक दुख और डिप्रेशन महसूस हो सकता है। प्रेग्‍नेंसी में दवाओं का सेवन कम से कम करना चाहिए। इसकी बजाय आप कॉमेडी और मजाकिया शोज देखकर या चुटकुले सुनकर हंस सकती हैं। इससे मूड भी ठीक रहता है और धीरे-धीरे डिप्रेशन के लक्षणों में भी कमी आती है।
जब भी आप अल्‍ट्रासाउंड के लिए जाती हैं तो जरा हंसकर देखें कि आपका शिशु कैसी प्रतिक्रिया देता है। जब मां प्रेग्‍नेंसी में खुश और उत्‍साह से परिपूर्ण रहती है तो बच्‍चा ज्‍यादा एक्टिव रहता है और उसका विकास भी बेहतर होता है।
ऐसे कई कारक हैं जो प्रीमैच्‍योर डिलीवरी का कारण बनते हैं और जब मां की इम्‍युनिटी कमजोर हो तो इसका खतरा और बढ़ जाता है। इम्‍युनिटी कमजोर होने पर वायरस, बैक्‍टीरिया आदि आसानी से प्रभावित करते हैं और इसका बुरा असर मां एवं बच्‍चे दोनों पर पड़ता है।

इंफेक्‍शन से मां से ज्‍यादा शिशु को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। इसकी वजह से बच्‍चे का नौ महीने से पहले जन्‍म या कोई जन्‍म विकार हो सकता है।
अगर आप इंटेलेजेंट बच्‍चा चाहती हैं तो प्रेग्‍नेंसी में वो सब काम करें जिससे शिशु के मस्तिष्‍क के विकास में मदद कर सके। डायट के अलावा मां का खुश रहना भी शिशु के विकास के लिए जरूरी होता है। इससे गर्भस्‍थ शिशु के मूवमेंट पर तो असर पड़ता ही है साथ ही दिमाग की कोशिकाओं का भी विकास होता है।
गर्भावस्‍था में मॉर्निंग सिकनेस, कमर दर्द, ऐंठन, पैरों में सूजन और गर्भावस्‍था में सिरदर्द होता है। हंसने से आपका ध्‍यान दर्द से हटता है और शरीर में कुछ ऐसे केमिकल रिलीज होते हैं जो नैचुरल पेन किलर यानी दर्द निवारक का काम करते हैं।
प्रेग्‍नेंसी में हाई ब्‍लड प्रेशर सबसे ज्‍यादा खतरनाक होता है और इससे जल्‍दी प्री-क्‍लैंप्‍सिया एवं कई तरह की समस्‍याएं हो सकती हैं। प्रीमैच्‍योर डिलीवरी भी हो सकती है या फिर स्थिति ज्‍यादा बिगड़ने पर सिजेरियन डिलीवरी करवाने की जरूरत पड़ सकती है। खुश रह कर और रोज हंसने से तनाव में कमी आती है जिससे ब्‍लड प्रेशर कंट्रोल में और शरीर स्‍वस्‍थ रहता है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि हंसने से प्रेगनेंट मां की इम्‍युनिटी भी बढ़ती है। हंसने से शरीर में तनाव कम होता है जिससे इम्‍युन सिस्‍टम को स्‍वस्‍थ रखने वाले हार्मोंस और केमिकल्‍स सक्रिय हो जाते हैं। इस तरह आप किसी सप्‍लीमेंट या दवा के बिना ही हंसकर प्रेग्‍नेंसी में स्‍वस्‍थ और बीमारियों से दूर रह सकती हैं।
भ्रूण की नॉर्मल मूवमेंट कितनी होनी च‍ाहिए
माना जाता है कि प्रेगनेंसी के सातवें महीने में भ्रूण 95 फीसदी समय सोता रहता है और हर घंटे में लगभग 50 बार मूव करता है। इनमें से किक और स्‍ट्रेचिंग मां को महसूस होती है जबकि पलकें झपकाना महसूस नहीं होता है। इस पीरियड में हर बच्‍चे की मूवमेंट अलग होती है। इसलिए ये कह पाना मुश्किल है कि किस तरह की मूवमेंट सही और किस तरह की गलत है।

आमतौर पर डॉक्‍टर अल्‍ट्रासाउंड के जरिए भ्रूण की हार्ट रेट और प्रतिक्रिया की जांच करते हैं। इससे पता चलता है कि गर्भस्‍थ शिशु कितना स्‍वस्‍थ है। जैसे-जैसे डिलीवरी का समय पास आता चला जाता है, वैसे-वैसे शिशु की मूवमेंट भी अलग होती चली जाती है।
हर बच्‍चे की मूवमेंट अलग होती है लेकिन इतना कहा जा सकता है कि बच्‍चे जोड़ों को स्‍ट्रेच करने, हिचकी लेने, पलक झपकाने, डकार लेने और किक मारने के लिए मूव करते हैं। अगर आपको शिशु की कोई असामान्‍य मूवमेंट महसूस हो रही है तो तुरंत डॉक्‍टर को बताएं।

शिशु की मूवमेंट से उसकी सेहत के बारे में कई चीजें पता चलती हैं। अगर आपका बच्‍चा कम या न के बराबर मूव कर रहा है तो ये चिंता का विषय हो सकता है। इसे आपको बिल्‍कुल भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्‍योंकि ये किसी खतरे का संकेत हो सकता है।

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