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नन्हें शिशुओं को तेज बुखार होना असामान्य है, और यदि तेज बुखार हो, तो यह इस बात की चेतावनी है कि कुछ गड़बड़ जरुर है।
शिशु को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं, यदि वह:
तीन महीने से कम उम्र का है और उसे 100.4 डिग्री फेहरनहाइट या इससे ज्यादा बुखार हो।
तीन से छह महीने की उम्र का है और उसका तापमान 102.2 डिग्री फेहरनहाइट या इससे ज्यादा हो।
मगर यदि आपका शिशु छह महीने से बड़ा है, तो आप उसकी स्वास्थ्य स्थिति का अंदाजा हमेशा उसके बढ़े हुए तापमान से नहीं लगा सकती हैं। आमतौर पर बुखार का कोर्स पूरा होने देना ठीक रहता है और कई बुखार बहुत जल्द और अपने आप ठीक हो जाते हैं।
इस उम्र में, यदि आपके शिशु को बुखार हो मगर वह इससे प्रभावित न लग रहा हो हो सामान्य ढंग से खेल और दूध पी रहा हो तो आपको चिंता करने की जरुरत नहीं है। मगर, फिर भी आपको उसपर नजर रखनी पड़ेगी कि वह पहले से बेहतर महसूस कर रहा है या नहीं। साथ ही अन्य चिंताजनक संकेतों जैसे कि सांस लेने में परेशानी, भूख कम लगना, उनींदा होना या आसपास की चीजों में रुचि न दिखाना आदि पर ध्यान दें।
अतिरिक्त सलाह के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से बात करें। उदाहरण के तौर पर शिशु का बुखार यदि 104 डिग्री पहुंच जाए तो डॉक्टर आपको तुरंत आने के लिए कह सकते हैं। या फिर 24 घंटों के बाद भी बुखार बना रहे, फिर चाहे अन्य लक्षण हो या नहीं।
बुखार के इन सात आश्चर्यजनक तथ्यों के बारे में भी जानकारी रखें और अपनी अंत:प्रेरणा (इंस्टिंक्ट) पर विश्वास करें। शिशु की उम्र चाहे कितनी भी हो, अगर आपको लगे कि शिशु की तबियत ठीक नहीं है, तो हो सकता है आप सही हों। शिशु के उपचार के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लें।
बच्चे को बुखार होने की क्या वजह हो सकती है?
आपके शिशु को बुखार इसलिए है क्योंकि उसका शरीर किसी इनफेक्शन या बीमारी से लड़ रहा है। शरीर का बढ़ा हुआ तापमान शिशु की प्रतिरक्षण प्रणाली की इनफेक्शन से लड़ने में मदद करता है।
कई बार बुखार होने के स्पष्ट कारणों का पता नहीं चलता, मगर कुछ आम कारण नीचे दिए गए हैं:
श्वसन पथ संक्रमण (रेस्पिरेटरी ट्रेक्ट इनफेक्शन-आरटीआई)। नाक, गले, वायुमार्ग और फेफड़ों के किसी भी इनफेक्शन को आरटीआई कहा जाता है। आरटीआई में ब्रोंकियोलाइटिस, क्रूप और काली खांसी शामिल है। क्रूप और काली खांसी में बुखार आमतौर पर खांसी होने से पहले होता है।
शिशुओं और बच्चों में कान का इनफेक्शन
शिशुओं और बच्चों में कान का इनफेक्शन
विषाणु जनित इनफेक्शन जिनमें चकत्ते होते हैं, जैसे कि छोटी माता (चिकनपॉक्स) या लाल खसरा (रास्योला)।
टॉन्सिलाइटिस जो कि गलतुण्डिका (टॉन्सिल) में सूजन होना है। यह आमतौर पर विषाणुजनित इनफेक्शन होता है, मगर कभी कभार यह जीवाणुजनित संक्रमण की वजह से भी हो सकता है।
गुर्दे या शिशुओं में मूत्रमार्ग संक्रमण
पेट का इनफेक्शन (गैस्ट्रोएंटेराइटिस)
जीवाणुजनित इनफेक्शन जैसे कि टाइफाइड।
मच्छरजनित बीमारियां।
तापघात (हीट स्ट्रोक)
शिशुओं को अक्सर टीकाकरण के बाद भी बुखार हो जाता है। डॉक्टर आपको बताएंगे कि टीकाकरण के बाद किन लक्षणों के लिए शिशु पर नजर रखनी चाहिए।
आपने यह सुना होगा कि शिशु के दांत निकलने पर भी उसे बुखार हो सकता है। बहरहाल, दांत निकलने से शिशु को परेशानी जरुर हो सकती है, मगर इसकी वजह से बुखार या पेट में गड़बड़ी नहीं होती।
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