सोनोग्राफी से क्या पता चलता है?pregnancytips.in

Posted on Thu 31st Oct 2019 : 22:24

सोनोग्राफी : डॉक्टर को रोग की जड़ तक पहुंचाने का पेशा
अल्ट्रासाउंड टेक्निशियन को ही सोनोग्राफर कहा जाता है। पैरामेडिकल क्षेत्र के ये पेशेवर कुछ विशेष उपकरणों की मदद से मरीजों के रोगग्रस्त अंगों की तस्वीरें लेते हैं। सोनोग्राफी रोग का पता लगाने की एक...
सोनोग्राफी : डॉक्टर को रोग की जड़ तक पहुंचाने का पेशा

अल्ट्रासाउंड टेक्निशियन को ही सोनोग्राफर कहा जाता है। पैरामेडिकल क्षेत्र के ये पेशेवर कुछ विशेष उपकरणों की मदद से मरीजों के रोगग्रस्त अंगों की तस्वीरें लेते हैं। सोनोग्राफी रोग का पता लगाने की एक जांच विधि है। इसके लिए जो मशीन इस्तेमाल में लाई जाती है, उससे अल्ट्रासाउंस वेव्स (उच्च फ्रिक्वेंसी वाली ध्वनि तरंगें) उत्पन्न की जाती हैं। जब इन तरंगों को शरीर के किसी खास हिस्से के ऊपर प्रवाहित किया जाता है, तो सोनोग्राफी मशीन से जुड़ी एक स्क्रीन पर संबंधित अंग, टिश्यू और शरीर के उस हिस्से में हो रहे रक्त संचार की तस्वीरें नजर आने लगती हैं। तस्वीरें लेने की इस प्रक्रिया को ही चिकित्सा क्षेत्र की कामकाजी शब्दावली में सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउंड स्कैन कहा जाता है।

इसी तरह इस प्रक्रिया को संपन्न करने वाले पेशेवरों को सोनोग्राफर कहा जाता है। जिन सोनोग्राफरों के पास इमेजिंग और रक्त शिराओं का टेस्ट करने में विशेषज्ञता होती है, उन्हें वस्कुलर टेक्नोलॉजिस्ट कहा जाता है। सोनोग्राफी की जरूरत रोगी के शरीर (खासकर रोगप्रभावित अंग) को अंदर से देखने की यह एक ऐसी तकनीक है, जिसमें शरीर के साथ किसी भी तरह की चीर-फाड़ करने की जरूरत नहीं होती। सोनोग्राफी की इस खासियत के कारण इसका इस्तेमाल शरीर के कई अंगों मसलन पेट, स्तन, हृदय, रक्त नलिकाओं, प्रजनन संबंधी अंगों और पौरुष ग्रंथि आदि की जांच के लिए किया जाता है।

हृदय रोगों, हृदयाघात और नाड़ी संबंधी रोगों की पहचान और उनके उपचार में सोनोग्राफी का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। यही नहीं कैंसर की जांच के लिए होने वाले बायोप्सी टेस्ट में भी सोनोग्राफी मददगार साबित हो रही है। कैंसर की आशंका वाले अंग में बीमारी का पता लगाने के लिए एक बारीक सुई की सहायता से संबंधित अंग से कोशिकाओं (सेल) का थोड़ा-सा नमूना लिया जाता है, जिसकी बाद में प्रयोगशाला में जांच की जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान जब सुई को शरीर में प्रवेश कराया जाता है, तब सोनोग्राफी के माध्यम से ही देखा जाता है कि सुई तय स्थान पर पहुंच रही है या नहीं। स्पेशलाइजेशन के क्षेत्र (सोनोग्राफी में) ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजिक सोनोग्राफी एब्डोमिनल सोनोग्राफी (लीवर, किडनी, गालब्लैडर और पैनक्रियाज) न्यूरोसोनोग्राफी (मस्तिष्क) ब्रेस्ट सोनोग्राफी वस्कुलर सोनोग्राफी (ब्लड वेसल्स) कार्डियक सोनोग्राफी (हर्ट) सोनोग्राफर का काम अस्पताओं, नर्सिग होम और तमाम छोटे-बड़े चिकित्सा संस्थानों में सोनोग्राफर को नियुक्त किया जाता है। वहां वह अपने नियोक्ता संस्थान की जरूरत के अनुसार डायग्नोस्टिक इमेजिंग डिपार्टमेंट, ऑपरेशन थियेटर और आईसीयू (इंटेंसिव केअर यूनिट) आदि में डॉक्टरों और नर्सो के साथ काम करना होता है। उनके काम का मुख्य हिस्सा होता है, सोनोग्राफी के लिए उपकरणों को व्यवस्थित करना और मरीजों को सही पोजिशन में आने के लिए निर्देशित करना, ताकि बेहतर जांच रिपोर्ट मिल सके। इसके अलावा वह सोनोग्राफी के दौरान स्क्रीन पर यह भी देखते हैं कि रोगी के जिस अंग का चित्र (इमेज) लिया गया है, उससे रोग की पहचान संभव होगी या नहीं। वह लिए गए कई चित्रों में से उन्हीं चित्रों को अंतिम रूप से चुनते हैं, जिनके आधार पर डॉक्टर मरीज में रोग के होने या न होने के निष्कर्ष तक पहुंच सकें।

सोनोग्राफर को अपने मूल कार्यो के अलावा कुछ अतिरिक्त कार्य भी करने होते हैं। इनमें रोगियों के रिकॉर्ड को रखना, उपकरणों का रख-रखाव और मरीजों को जांच के लिए समय देना आदि शामिल होता है। कई बार उन्हें पूरे डायग्नोस्टिक इमेजिंग विभाग के प्रबंधन संबंधी कार्यो को भी देखना होता है।

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