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प्रेगनेंसी के 37वें सप्ताह से पहले शिशु के जन्म लेने को प्रीमैच्योर या प्रीटर्म बर्थ कहते हैं। हालांकि, एक नॉर्मल प्रेगनेंसी लगभग 40 सप्ताह की होती है।
गर्भावस्था के आखिरी हफ्ते शिशु का वजन बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और इस समय उसके कई महत्वपूर्ण अंगों का पूर्ण विकास होता है जिसमें मस्तिष्क और फेफड़े शामिल हैं। यही वजह है कि प्रीमैच्योर बच्चों को अधिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं और उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में रुकना पड़ सकता है। इन बच्चों को लंबे समय तक प्रभावित करने वाली कोई समस्या जैसे कि शारीरिक विकलांगता हो सकती है।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, दुनियाभर में नवजात शिशु की मत्यु का प्रमुख कारण प्रीमैच्योर बर्थ है। यह बच्चों में दीर्घकालिक नर्वस सिस्टम से संबंधी विकारों का भी मुख्य कारण है।
रिटेंशन रोकना के लिए कुछ और टिप्स – Tips to Prevent Water Retention in Hindi
वॉटर रिटेंशन के कारण – What Causes Water Retention in Hindi
वॉटर रिटेंशन यानी शरीर के अंगों में पानी जमा होने के कई कारण हो सकते हैं। यहां हम कुछ प्रमुख कारणों के बारे में बता रहे हैं।
लंबी यात्रा: लंबी यात्रा के दौरान एक ही जगह बैठे रहने से वॉटर रिटेंशन की समस्या हाे सकती है । साथ ही इस वजह से हमारे पैरों में सूजन आ सकती है (2)।
हार्मोनल असंतुलन: एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन शरीर के तरल पदार्थ को नियंत्रित करते हैं। जब इन हार्मोन में उतार-चढ़ाव होता है, तो शरीर के टिशू में अधिक पानी जमा हो जाता है (3)।
माहवारी: इस दौरान तेजी से हार्मोन्स में परिवर्तन होता है और एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन हार्मोन घटने लगते हैं, जिससे वॉटर रिटेंशन होता है और वजन बढ़ने लगता है (4)।
नमक का सेवन: नमक में सोडियम पाया पाया जाता है, जिस कारण नमक के सीमित सेवन से हमारे शरीर में पानी की उचित मात्रा बनी रहती है। वहीं, इसका अधिक सेवन शरीर में पानी की अधिकता और वॉटर रिटेंशन का कारण बन सकता है (5)।
हृदय की कमजोरी के कारण: जब रक्त को पंप करने के मामले में हृदय कमजोर हो जाता है, तब नसों में रक्तचाप बढ़ने के कारण तरल पदार्थ शरीर के टिशू में रिसने लगता है और वॉटर रिटेंशन का कारण बन सकता है (6)।
चिकित्सीय स्थिति: अनियमित दिल की धड़कन, हाथ या पैर में अचानक सूजन आना, जल्दी से वजन बढ़ना, कम पेशाब आना वॉटर रिटेंशन का कारण हो सकता है (7)।
गर्भावस्था: सामान्य गर्भावस्था के दौरान शरीर का कुल पानी 6 से 8 लीटर तक बढ़ जाता है। इस अवस्था को इडिमा कहा जाता है। इससे भी वॉटर रिटेंशन की समस्या हो सकती है (8)।
जानते हैं वॉटर रिटेंशन के क्या-क्या लक्षण हो सकते हैं।
वॉटर रिटेंशन के लक्षण – Symptoms of Water Retention in Hindi
वॉटर रिटेंशन को जानने के लिए यहां हम इसके कुछ लक्षणों के बारे में बता रहे हैं।
प्रीमैच्योर बर्थ के कारण
अक्सर प्रीमैच्योर बर्थ का कारण पता नहीं चल पाता है। हालांकि, कुछ ऐसे कारक हैं जिनकी वजह से महिलाओं को जल्दी लेबर पेन शुरू हो जाता है।
डायबिटीज, ह्रदय रोग, किडनी डिजीज और हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त महिलाओं में प्रीमैच्योर लेबर का खतरा अधिक होता है।
इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान कंसीव करने से पहले पोषण की कमी, प्रेगनेंसी में धूम्रपान, ड्रग्स और शराब लेने, मूत्र मार्ग में संक्रमण और एमनिओटिक मेंब्रेन इंफेक्शन जैसे कुछ संक्रमणों, पहली प्रेगनेंसी में प्रीमैच्योर बर्थ, असामान्य गर्भाशय और गर्भाशय ग्रीवा के कमजोर होने के कारण उसका जल्दी खुल जाना भी प्रीमैच्योर बर्थ का कारण हो सकता है।
17 से कम और 35 से अधिक उम्र की महिलाओं में नौ महीने में से पहले डिलीवरी होने का खतरा अधिक रहता है।
प्रीमैच्योर शिशु में होने वाली समस्याएं
जितनी जल्दी शिशु का जन्म होगा, उसमें मेडिकल समस्याएं भी उतनी ही ज्यादा होंगीं। प्रीमैच्योर इंफैंट में जन्म के तुरंत बाद ही ये लक्षण दिख सकते हैं :
सांस लेने में दिक्कत, वजन कम होना, बॉडी फैट कम होना, शरीर का तापमान सामान्य रखने में असमर्थता, कम एक्टिव रहना, दूध पीने में दिक्कत और शरीर की त्वचा पीली पड़ना।
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