बच्चे कब रेंगना शुरू करते हैं?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:23

जानिए किस उम्र में घुटनों के बल चलना शुरू करते हैं बच्‍चे

बच्‍चे का क्रॉल करना पैरेंट्स के चेहरे पर खुशी ले आता है। वहीं, अगर बच्‍चा समय पर क्रॉल करना शुरू न करे तो माता पिता के लिए चिंता का विषय बन जाता है।

शिशु के जन्‍म के बाद उसके पहली बार बोलने और पहले कदम का इंतजार रहता है। हालांकि, चलने से पहले शिशु अपने घुटनों पर चलना (Crawling) शुरू कर देता है। कुछ बच्‍चे जल्‍दी घुटनों पर चलना शुरू कर देते हैं। अगर आपका बच्‍चा भी छोटा है और उसने अभी तक घुटनों पर चलना शुरू नहीं किया, तो जान लीजिए कि बच्‍चे किस उम्र में घुटनों पर चलना शुरू करते हैं?


किस उम्र में घुटनों पर चलते हैं बच्‍चे
कई बच्‍चे 7 महीने से 10 महीने तक के बीच में घुटनों के बल चलना शुरू कर देते हैं, लेकिन हर बच्‍चा अलग होता है और हो सकता है कि आपका बच्‍चा दूसरे बच्‍चों की तुलना में जल्‍दी या देरी से चलना शुरू करे। वहीं, कुछ बच्‍चे घुटनों के बल चलने की बजाय सीधा चलना शुरू करते हैं।

इस बात का ध्‍यान रखें कि हर बच्‍चे का विकास अलग तरह से होता है। उसकी तुलना दूसरे बच्‍चों से न करें।

चलने से पहले मिलते हैं ये संकेत
घुटनों के बल चलना शुरू करने से पहले बच्‍चों को कुछ स्किल्‍स विकसित करने की जरूरत होती है। ये स्किल्‍स बच्‍चे की मांसपेशियों को मजबूत कर उसे चलने में मदद करते हैं। अगर आपको निम्‍न संकेत मिल रहे हैं तो हो सकता है कि जल्‍द ही आपका बच्‍चा घुटनों पर चलना शुरू कर दे :

लेटने पर लगातार मूव करना।
पेट के बल लेटने पर गर्दन को इधर उधर घुमाना
पीठ के लेटने पर पैरों को पकड़ना।
लेटने पर करवट बदलते रहना।

बच्‍चे की कैसे करें मदद
अगर आपके बच्‍चे ने अपनी उम्र के बाकी बच्‍चों की तरह घुटनों के बल चलना शुरू नहीं किया है, तो ऐसे कई तरीके हैं जिनकी मदद आप घुटनों के बल चलने में उसकी मदद कर सकते हैं।

टमी टाइम बढाएं : बच्‍चों को उनके पेट के बल लिटाएं। इससे बच्‍चों को कंधों, बांह और शरीर के ऊपरी हिस्‍से को मजबूत करने में मदद मिलती है। इन्‍हीं मांसपेशियों से बच्‍चे को क्रॉल करने में मदद मिलती है।

बच्‍चों की आंखें नैचुरली तेज करने के लिए खिलाएं ये फूड्स

कैरोटीनोइड के एंटी ऑक्‍सीडेटिव गुण आंखों को फ्री रेडिकल्‍स से दूर रख सकते हैं। विटामिन ए युक्‍त हरी पत्तेदार सब्जियों में कैरोटीनोइड सबसे अधिक पाए जाते हैं। इनमें अन्‍य विटामिन और खनिज पदार्थ जैसे कि कैल्शियम, विटामिन सी और विटामिन बी12 भी होता है।

अपने बच्‍चे के आहार में ब्रोकली, केल और पालक को शामिल करें। पालक में ल्‍यूटिन और जीएक्‍सेंथिन होता है जो आंखों की रोशनी को बढ़ाता है।



मछली में हेल्‍दी ओमेगा 3 फैटी एसिड होते हैं जो आंखों की रेटिना के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। ओमेगा 3 फैटी एसिड दिमाग को तेज करता है जिससे आंखों की मांसपेशियों को भी मजबूती मिलती है और आंखों की रोशनी बढ़ती है।

अपने बच्‍चे को सैल्‍मन और ट्यूना फिश खिलाएं। आप उसे फिश ऑयल पिल्‍स भी दे सकती हैं।


दालों में प्रचुर मात्रा में बायोफल्‍वेनोइड और जिंक होता है जो कि रेटिना को डैमेज से बचाता है। बच्‍चों की आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए काली दाल और राजमा खिलाएं।

दालों के अलावा ड्राई फ्रूट्स जैसे कि पिस्‍ता, काजू, बादाम, अखरोट और मूंगफली भी आंखों को तेज करते हैं। इनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन ई होता है जो कि प्राकतिक रूप से बच्‍चों में मायोपिया के खतरे को कम करता है।

इनमें फैटी एसिड और विटामिन ई होता है जो ड्राई आईज को रोकता है। अलसी के बीज और चिया के बीज खाने से भी आंखों से संबंधित परेशानियों को रोका जा सकता है।

नींबू, टमाटर, अमरूद और संतरा सिट्रस फलों में शामिल है। इन फलों में प्रचुरता में विटामिन सी पाया जाता है और ये आंखों को सूर्य की रोशनी से होने वाले नुकसान से बचाते हैं।

आडू, आम और पपीता, पीले रंग के फल भी आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। इनमें बीटा कैरोटीन और लाइकोपिन पाया जाता है जिससे आंखों की रोशनी में सुधार आता है।


एवोकाडो में अधिक मात्रा में ल्‍यूटिन होता है। ल्‍यूटिन एक कैरोटीनोइड विटामिन है जो मोतियाबिंद जैसी आंखों से जुड़ी परेशानियों से बचाता है। इससे बच्‍चों की आंखों की रोशनी भी तेज होती है।

अंडों में प्रचुरता में विटामिन ए और प्रोटीन होते हैं। इनमें ल्‍यूटिन नामक एंटीऑक्‍सीडेंट भी होता है जो मैकुलर डिजेनरेशन और आंखों की रोशनी कम होने से बचाता है। इससे आंखें ठीक तरह से कार्य करती हैं। आप अपने बच्‍चे को रोज एक एवोकाडो और अंडा जरूर खिलाएं।

सुरक्षित जगह ढूंढें : घर में कोई ऐसी सुरक्षित जगह ढूंढें, जहां शिशु को क्रॉल करना सिखाया जा सके और उसे किसी चीज से चोट न लगे। कोई भी हानिकारक या नुकीली चीज बच्‍चे से दूर रखें।
खिलौने रखें : आप खुद बच्‍चों को क्रॉल करने की ट्रेनिंग दे सकते हैं। उसके सामने कुछ दूरी पर खिलौने रखें और फिर उसे खिलौने के पास जाने के लिए कहें।

यहां तक कि रिसर्च का भी कहना है कि जो बच्‍चे 11 महीने की उम्र तक चीजों को देखकर क्रॉल करना शुरू करते हैं, वो अक्‍सर 13 महीने की उम्र तक चलना शुरू कर देते हैं।

बच्‍चा क्रॉल करना शुरू न करे तो
हो सकता है कि कुछ बच्‍चे क्रॉल करने की बजाय सीधा चलना शुरू करें। कुछ बच्‍चे आसपास की चीजों के सहारे खड़े होकर चलना शुरू कर देते हैं और आपको पता भी नहीं चल पाता है कि कब उसने घुटने के बल चलने की बजाय सीधा वॉक करनी शुरू कर दी है।

अपने बच्‍चे को क्रॉल करना सीखने के लिए पर्याप्‍त समय दें और इसमें उसकी मदद भी करें। अगर इस सबके बावजूद भी बच्‍चा चलना शुरू नहीं करता है, तो आप पीडियाट्रिशियन यानी बाल चिकित्‍सक से संपर्क कर सकते हैं।

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