मां से बच्चे में पोषक आहार कैसे पहुंचता है?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:34

अच्छा पोषण अस्तित्व, स्वास्थ्य और विकास के लिए आधारशिला है। खैर-मनुष्य के बच्चों को अपने बच्चों के जीवन में एक बेहतर शुरुआत दे स्वस्थ वयस्कों में हो जाना और बदले में, स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। खैर-मनुष्य महिलाओं को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कम जोखिम का सामना है, और अपने बच्चों को दोनों शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत विकास के पथ पर बंद सेट। विश्व स्तर पर, बच्चे की मौत का एक तिहाई से अधिक कुपोषण के कारण कर रहे हैं। 5 साल की उम्र के तहत बच्चों के बीच होने वाली मौतों की वैश्विक वितरण , कारण से, 2010 बाल कुपोषण-एक साइलेंट किलर कुपोषण सब बचपन से होने वाली मौतों में से लगभग आधे से जुड़ा हुआ है। चावल, मक्का, गेहूं, तेल, चीनी और नमक जैसी बुनियादी भोजन के लिए कीमतों में खाद्य सुरक्षा की धमकी, आसमान छू, और गंभीर कुपोषण और भुखमरी में दुनिया के सबसे गरीब बच्चों के लाखों लोगों के लिए मजबूर कर रहे हैं। दुनिया के बहुत में, पूर्ण पेट के साथ बच्चों को अभी भी कमी कर रहे हैं पोषक तत्वों और विटामिन वे अपनी पूरी क्षमता विकसित करने की जरूरत है। एक कुपोषित बच्चे को स्कूली शिक्षा का सबसे बाहर निकलने की संभावना कम होती है, बीमारी से लड़ने के लिए कम करने में सक्षम है, और अक्सर शारीरिक और मानसिक रूप से अवरुद्ध हो जाता है। कुपोषण की क्षमता के साथ सभी निवारक उपायों के बच्चों की उत्तरजीविता पर सबसे बड़ा संभावित प्रभाव, 800,000 लोगों की मृत्यु पर रोकने के लिए किया गया है उम्र के दो वर्ष से कम बच्चों की उत्तरजीविता और शिशुओं की वैश्विक स्थिति इष्टतम स्तनपान पर गरीबी। प्रभाव के चक्र में फंस बच्चों रहता है (13 प्रति विकासशील दुनिया में पांच वर्ष से कम बच्चों में सभी मौतों) (2013 नुकीला) का प्रतिशत। स्तनपान बच्चों को गैर-स्तनपान बच्चों की तुलना में शुरुआती महीनों में जीवित रहने के लिए कम से कम छह बार बड़ा मौका है। एक विशेष रूप से स्तनपान बच्चे को एक गैर-स्तनपान बच्चे की तुलना में पहले छह महीनों में मरने के लिए 14 गुना कम होने की संभावना है, और स्तनपान काफी तीव्र श्वसन संक्रमण और दस्त से होने वाली मौतों को कम कर देता है, दो प्रमुख बच्चे हत्यारों (2008 नुकीला)। इष्टतम स्तनपान प्रथाओं के संभावित प्रभाव की बीमारी और साफ पानी और स्वच्छता के लिए कम उपयोग का एक उच्च बोझ के साथ देश की स्थितियों के विकास में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। लेकिन औद्योगिक देशों में गैर-स्तनपान बच्चों के मरने की अधिक से अधिक जोखिम पर भी रहे हैं - संयुक्त राज्य अमेरिका में पोस्ट-नवजात मृत्यु दर के हाल के एक अध्ययन गैर स्तनपान शिशुओं में मृत्यु दर में 25% की वृद्धि पाया। ब्रिटेन मिलेनियम पलटन सर्वेक्षण में, विशेष रूप से स्तनपान के छह महीने के दस्त के लिए अस्पताल दाखिले में एक 53% कमी और श्वसन तंत्र के संक्रमण में 27% की कमी के साथ जुड़े थे। स्तनपान दरों में नहीं रह गया है कि वैश्विक स्तर पर गिरते हुए, कई देशों के साथ पिछले एक दशक में उल्लेखनीय वृद्धि का सामना कर रहा है, विकासशील दुनिया में उम्र के छह महीने से भी कम के बच्चों की केवल 39 फीसदी विशेष रूप से स्तनपान कर रहे हैं और सिर्फ 58 20-23 माह के बच्चों का प्रतिशत जारी रखा स्तनपान के अभ्यास से लाभ होता है। देशों की बढ़ती संख्या महत्वपूर्ण और तेजी से प्रगति 25 देशों दस्त, निमोनिया, मलेरिया के साथ जुड़े बच्चे की मौत का एक मुख्य कारण के रूप में पाया गया है|


पोषण की आवश्यकता

पोषण कितना जरूरी है इसे देश की मौजूदा परिस्थितियों से समझा जा सकता है। जितनी ताकत अन्न ग्रहण करने में है, उतनी ही ताकत अन्न त्यागने में भी है। अन्न त्यागने की ताकत से पूरे देश में हलचल पैदा हो सकती है। बहरहाल अन्न का मानव संस्कृति सभ्यता की शुरूआत से ही नाता है। जैसे-जैसे संस्कृति पुष्ट होती रही है वैसे-वैसे ही अन्न, भोजन, पोषण में भी कई स्तरों पर बेहतर होते जाने की कवायद चलती रही है। पोषण सुरक्षा को मानव सभ्यता की शुरूआत से ही देखा जाता रहा है। किसी भी प्राणी के लिए पोषण जरूरी है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है कि संतुलित पोषण कैसे हो ?
कितना पोषण है जरूरी

इंडियन कांउसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने एक व्यक्ति के लिए कितना पोषण जरूरी है उसे कैलोरी के अनुसार मापदंड तय किया है। आईसीएमआर के मुताबिक एक औसत भारतीय के लिए भारी काम करने वालों के लिए रोजाना 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति और कम शारीरिक श्रम करने वाले लोगों के लिए 2100 कैलोरी पोषण जरूरी है। पोषण सुरक्षा का मतलब यह भी है कि किसी भी व्यक्ति की अपने जीवन चक्र में ऐसे विविधता पूर्ण पर्याप्त मात्रा मेपहुंच सुनि6चित होना जिसमें जरूरी कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, वसा, सूक्ष्म पोषण तत्व की उपलब्धता हो। इन तत्वों की आपूर्ति अलग-अलग तरह के अनाजों, दालों, तेल, दूध, अण्डे, सब्जियों और फलों से होती है, इसलिए इनकी उपलब्धता और वहन करने की परिस्थितियां बननती चाहिये। इसी तारतम्य में पीने के साफ पानी की उपलब्धता भी जरूरी है।
पोषण सुरक्षा पर राज्य की संवैधानिक बाध्यताएं

भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 हर एक के लिए जीवन और स्वातंत्र्यता का मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है। इस अनुच्छेद के तहत उपलब्ध जीवन और स्वातं.त्र्यता के अधिकार में भोजन का अधिकार सम्मिलित है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 47 कहता है कि लोगों के पोषण और जीवन के स्तर को उठाने के साथ ही जनस्वास्थ्य को बेहतर बनाना राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

मानव अधिकारों पर जारी अन्तर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र (1949) की धारा-25 हर व्यक्ति के लिये पर्याप्त भोजन के अधिकार को मान्यता देती है।

आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय सहमति दस्तावेज की धारा-11 (1966) और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की समिति हर व्यक्ति को भूख से मुक्त रखने के संदर्भ में राज्य की जिम्मेदारियों की विस्तार से व्याख्या करती है।

इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल अधिकार समझौते (धारा-271 अौर 273) अौर महिलाओं के खिलाफ होने वाले हर तरह के भेदभाव की सामाप्ति के लिये सम्मेलन (सीडा) के घोषणा पत्र (धारा-12) महिलाओं और बच्चों की खाद्य-पोषण सुरक्षा के बारे में राज्य की जिम्मेदारी को स्पष्ट करते हैं।

राज्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए कमजोर वर्ग के लोगों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराता है। इसके साथ ही आईसीडीएस और मिड डे मील के जरिए बच्चों को पोषण सुरक्षा प्रदान की जा रही है। मध्यप्रदेश में अलग अलग समुदाय अपनी संस्कृतियों के साथ विविधता के साथ बसर करते हैं। कमोबेश पोषण के नजरिए से भी देखें तो मध्यप्रदेश में बहुत विविधता पाई जाती है। बावजूद इसके प्रदेश में स्वास्थ्य मानकों के नजरिए से स्वास्थ्य की तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है। खासकर बच्चों के संदर्भ में देखें तो यहां साठ प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
कुपोषण क्यों है

इसे पोषण की उपलब्धता और उसके वितरण के नजरिये से देखा जाना चाहिए। 1972-73 में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 153 क़िलोग्राम अनाज को उपभोग होता था, अब वह 1222 क़िग्रा प्रतिमाह आ गया है। 2005-06 में एक सदस्य औसतन उपभोग 11920 क़िग्रा था जो 2006-07 में औसत भोजन का उपभोग घटकर मात्र 11685 किग्रा प्रति व्यक्ति रह गया। नि6चित ही यह एक अच्छा संकेत नहीं है। यही कारण है कि यहां 5 वर्ष से कम उम्र के 70 फीसदी बच्चों में खून की कमी है। 19 में से 11 राज्यों में 75 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे एनीमिया के शिकार हैं।

बीमारी के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर जो दुनिया भर में हर साल विशेष रूप से कुपोषण, कुपोषण के लिए जिम्मेदार हैं सब बच्चे की मौत का एक तिहाई से अधिक,।

एक महिला को गर्भावस्था के दौरान कुपोषण के शिकार या जाता है तो उसके बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों के दौरान कुपोषण के शिकार है, तो बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास और विकास धीमा हो जाएगा। बच्चे बड़े होने पर यह सही नहीं किया जा सकता है - यह उसके जीवन के आराम के लिए बच्चे को प्रभावित करेगा।

शरीर को स्वस्थ और अच्छी तरह से कार्य अंगों और ऊतकों रखने के लिए आवश्यक उचित ऊर्जा की मात्रा (कैलोरी), प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्व प्राप्त नहीं होता है जब कुपोषण विकसित करता है। एक बच्चे या वयस्क कुपोषित द्वारा की जा रही कुपोषित जा सकता है।

लोग कुपोषित हैं जब दुनिया कुपोषण के अधिकांश भागों में होता है। विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं के आधे पेट के लिए प्राथमिक कारण, गरीबी, भोजन की कमी, दोहराया बीमारियों, अनुचित खिला प्रथाओं, देखभाल और गरीब स्वच्छता की कमी कर रहे हैं। आधे पेट खाना कुपोषण के जोखिम उठाती है। जोखिम जीवन के पहले दो वर्षों में सबसे बड़ी है। दस्त और अन्य बीमारियों को स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक प्रोटीन, खनिज और पोषक तत्वों की शरीर सार जोखिम जब आगे बढ़ जाती है।

एक घर का पर्याप्त भोजन और दस्त और अन्य बीमारियों आम है कि बनाने की स्थिति है नहीं करता है, बच्चों के कुपोषण के शिकार बनने के लिए सबसे कमजोर कर रहे हैं। बच्चे बीमार हो जाते हैं, वे वयस्कों की तुलना में तेजी से खतरे में उनके जीवन डालता है, जो जल्दी से ऊर्जा और पोषक तत्वों खो देते हैं।

यह बचपन और हृदय रोग और वयस्कता में अन्य रोगों में मधुमेह का कारण बन सकता है। कभी-कभी बच्चों को ऊर्जा के क्षेत्र में उच्च लेकिन इस तरह मीठा पेय या तला हुआ, स्टार्च भोजन के रूप में अन्य आवश्यक पोषक तत्वों में अमीर नहीं हैं कि खाद्य पदार्थों की बड़ी मात्रा में खाते हैं। बच्चे के आहार की गुणवत्ता में सुधार लाने के ऐसे मामलों में शारीरिक गतिविधि के अपने या अपने स्तर में वृद्धि के साथ साथ महत्वपूर्ण है।

एचआईवी जैसे पुराने रोगों, के साथ बच्चे भी अधिक अतिसंवेदनशील कुपोषण के लिए कर रहे हैं। उनके शरीर विटामिन, लोहा और अन्य पोषक तत्वों को अवशोषित एक कठिन समय है। विकलांग बच्चों वे की जरूरत है वे पोषण मिलता है सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत हो सकती है।

सभी लड़कियों और लड़कों को वे अच्छी तरह से एक स्वस्थ आहार के साथ मनुष्य हैं सुनिश्चित करते हुए माता, पिता या अन्य देखभाल करने वालों के साथ एक देखभाल और सुरक्षा के माहौल का अधिकार है|
बच्चों में पोषण का महत्व

पोषण से बच्चों की बढ़त अच्छी होती है। और दिमाग का विकास होता हैं। सही पोषण से बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है और बार-बार बीमार नहीं पड़ते। पोषण से ही बार-बार बीमार होने से बचा जा सकता है और कुपोषण के दायरे से मुक्ति भी पाई जा सकती है। सही पोषण से बीमारी नहीं होती, इसका असर एक व्यक्ति के जीवन पर देखने को मिलता है, उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है, बच्चों की एकाग्रता बढ़ जाती है और पढ़ाई में मन लगता है। देश का बेहतर भविष्य सुनिश्चित होता है।
महिलाओं और किशोरियों में खून की कमी बड़ी चुनौती

भारत में खून की कमी या एनीमिया बहुत आम बीमारी है। देश में 6 से 59 माह की आयु वर्ग में हर दस में सात बच्चे 695 प्रतिशत खून की कमी का शिकार हैं। इनमें से चालीस प्रतिशत बच्चे मामूली तौर पर और तीन प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से प्रभावित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं, युवतियां व बच्चे एनीमिया से ज्यादा पीड़ित हैं। एनएफएचएस के दूसरे सर्वे से तीसरे सर्वे में एनीमिया 74 प्रतिशत से बढ़कर 79 प्रतिशत पाया गया था। मध्यप्रदेश की तस्वीर इस मामले में और भी बदतर है। प्रदेश में 74 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं। प्रत्येक दस में से आठ गर्भवती मांएं खून की कमी से संघर्ष करती हैं। मां में खून की कमी का प्रभाव उनकी संतान पर सीधे रूप से पड़ता है। सर्वे में पाया गया है कि जिन मांओं को एनीमिया था उनमें से 544 प्रतिशत शिशुओं में भी खून की कमी थी। मध्यप्रदेश बिहार के बाद दूसरा राज्य है जहां बच्चों में सबसे ज्यादा एनीमिया है। किशोरी युवतियों में भी यह एक गंभीर बीमारी है, यहां हर दस में से छह युवतियां एनीमिया का शिकार हैं।
बच्चों में कुपोषण

देश में बच्चों की आधी आबादी कुपोषण का शिकार है। 24 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं। मध्यप्रदेश में हाल ही में राष्ट्रीय पोषण संस्थान हैदराबाद ने अध्ययन किया है। इस अध्ययन में पाया गया है कि मध्यप्रदेश में ग्रामीण क्षेत्र में 519 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। एनएफएचएस के तीसरे सर्वे के मुकाबले यहां लगभग दस प्रतिशत कुपोषण कम पाया गया हैं। यह एक सुखद संकेत हो सकता है, लेकिन एक चुनौती भी है, क्योंकि प्रदेश में आधे से ज्यादा बच्चे अब भी कुपोषण के संकट में अपनी जिंदगी से संघर्ष कर रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि उनके पोषण और सुरक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाए।
कुपोषण की पहचान

कुपोषण के प्रकार और मप्र में हालात कुपोषण की तीन तरीकों से पहचान हो सकती है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान के ताजा अध्ययन के मुताबिक मध्यप्रदेश में 519 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट, 489 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग और 258 प्रतिशत बच्चे वास्टिंग श्रेणी में आ रहे हैं।

मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की सर्वव्यापी घोषणा कहती है, ''हरेक को अपने व अपने परिवार की भलाई व स्वास्थ्य हेतु ऐसे पर्याप्त जीवन-स्तर का अधिकार है जिसमें रोटी, कपड़ा, मकान व स्वास्थ्य सेवा व आवश्यक सामाजिक सुविधाएं शामिल हैं

बाल-अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिज्ञा-पत्र (1989) का अधिनियम 24 पोषण-सम्बंधी बच्चों के अधिकार की साफ तौर पर व्याख्या करता है। यह प्रतिज्ञा-पत्र कहता है, ''सारे गवाह राज्य इस अधिकार के पूर्ण क्रियान्वयन हेतु जतनऔर खास तौर पर इस बाबत उपयुक्त कदम उठाएं , रोग एवं कुपोषण से निपटने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य ढांचे के तहत अन्य बातों के साथ-साथ तुरन्त उपलब्ध टेक्नोलॉजी का प्रयोग व पर्याप्त पौष्टिक आहार व पीने का साफ पानी कराना ।
अंडरवेट ( कम वजन )

इसको आयु के हिसाब से कम वजन होने के नजरिए से देखा जाता है। यह सबसे ज्यादा पाया जाने वाला कुपोषण है। उम्र के हिसाब से वजन कुपोषण मापने का एक सामान्य मापदंड है, लेकिन इसमें उंचाई को शामिल नहीं किया जाता है।
स्टंटिंग ( उंचाई के अनुपात में कम वजन )

इसे उम्र के हिसाब से उंचाई के मान से परिभाषित किया जाता है। यह मानक किसी भी शिशु के पूर्व में पोषण को प्रतिबिम्बित करता है।
वास्टिंग ( उंचाई के अनुपात में कम वजन )

इस मानक का मतलब यह है कि उंचाई के मुताबिक वजन कितना है। वास्टिंग को बच्चे की उम्र जाने बिना उसके वजन के मान से समझा जाता है।
शिशुओं की जरूरतें क्या है ?

स्तनपान शिशु का सर्वोत्तम पोषण है। विशेषज्ञों का मानना है कि जन्म के 1 घंटे के भीतर स्तनपान की शुरूआत शिशु के पूरे जीवन के लिए बुनियाद का काम करती है। इसी तरह छह माह की उम्र तक एक्सक्लूसिव स्तनपान बच्चे को कई बीमारियों से बचाने का काम करता है। बहरहाल इस दिशा में काम करने की बेहद जरूरत है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान के सर्वे में भी प्रदेश में संस्थागत प्रसव को बढ़ाने की दिशा में उल्लेखनीय काम हुआ है और अब यहां लगभग 78 प्रतिशत प्रसव स्वास्थ्य संस्थाओं में हो रहे हैं, लेकिन जन्म के पहले घंटे में स्तनपान का प्रतिशत केवल 264 है। यह अब भी चुनौती बना हुआ है। इस दिशा में व्यापक जनचेतना की आवश्यकता है।
शिशुओं की पोषण सुरक्षा के क्या मायने हैं?

1 शिशु और छोटे बच्चों के भोजन के संदर्भ में कौशलपूर्ण सहायता और सलाह का दिया जाना।

2 बच्चे के जन्म के 6 माह बाद तक माता को आर्थिक और पोषण सहायता दिया जाना।

3 समुदाय और कार्यस्थल पर समस्त सेवाओं और सामग्री सहित झूलाघर ।
पोषण सुरक्षा के लिए नीतिगत व्यवस्थाएं

राष्ट्रीय बाल नीति- 1974

एकीकृत बाल विकास परियोजना आईसीडीएस- 1975

राष्ट्रीय पोषण नीति- 1993

नेशनल प्लान ऑफ एक्शन फॉर न्यूट्रीशन- 2005

एनीमिया को रोकने के लिए विशेष योजना, आइरन टेबलेट के संदर्भ में

देश के सभी शासकीय प्रायमरी स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना।

9 माह से 3 साल तक के बच्चों को विटामिन ए की विशेष खुराक
बच्चों के लिए पूरक पोषण आहार छह माह बाद क्यों?

छ: महीने के बच्चे की शारीरिक जरूरतें बढ़ जाती है इसलिए मां के दूध के साथ ऊपरी आहार की शुरूआत करना आवश्यक है।

बच्चे का शारीरिक हलचल बढ़ जाता है जिसके लिये अधिक ताकत की आवश्यकता होती है, इसलिए मां के दूध के साथ ऊपरी आहार की जरूरत होती है।

छ: माह से बच्चा ऊपर का आहार पचा सकता है।

छ: माह के बच्चे में स्वाद के के तंतु विकसित हो जाते हैं। निगलने और चबाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
छ: माह से पहले क्यों नहीं

इससे बच्चे को माँ का दूध पूरा नहीं मिल पाएगा। अत: 6 माह तक जो ऊर्जा प्राप्त होनी थी, उसमें कमी हो जाएगी। बच्चे का आमशय छोटा होता है, यदि उसे तरल पदार्थ से भर दिया जाता है, तो उसे पोषकता नहीं मिल पाती है।

यदि ऊपरी आहार ज्यादा तरल एवं कम पोषकता वाले होते हैं, तो बच्चा कमजोर हो सकता है।

बच्चे को बीमारी का खतरा बढ़ जाएगा। समय के पूर्व ऊपरी आहार कम सुरक्षित एवं पचने में आसान नहीं होता है।

माता के पुन: गर्भवती होने के अवसर बढ़ जाते हैं।
ऊपरी आहार क्यों ?

6 माह की उम्र तक मां के दूध से आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है।

6 माह के बाद मां के दूध के अलावा अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता बच्चे को होती है।

इस तरह 6 महीने के बाद बच्चों को मां के दूध के साथ ऊपरी आहार देना आवश्यक होता है। इस उम्र में बच्चे की पाचन संस्थान भोजन पचाने के लिए भी तैयार हो जाता है।

ऊपरी आहार कैसा हो ?

बच्चे को दिया जाने वाला ऊपरी आहार स्थानीय उपलब्ध खाद्य सामग्री में से होना चाहिए। इसमें कम से कम निम्नानुसार भोजन शामिल करने की कोशिश की जानी चाहिए –

अनाज जैसे चावल, गेहूं, मक्का, बाजरा।
स्टार्च युक्त सब्जी जैसे आलू, शकरकंद आदि और स्टार्च युक्त फल जैसे केला आदि।
ऊपरी आहार सफाई से पकाया, परोसा एवं खिलाया जाना चाहिए।
इसमें एक चम्मच घी या तेल अवश्य मिलना चाहिए।

प्राय: ऊपरी आहार तरल करके बच्चे को दिया जाता है, ऐसा माना जाता है कि गाढ़ा भोजन बच्चे के गले में फसेगा तथा अपच करेगा, इससे उसमें पानी आदि मिलाकर उसे पतला कर दिया जाता है। यह जरूरी है कि बच्चे की मां को उसे देने वाले भोजन के गाढ़ेपन की जानकारी दी जाए। भोज्य पदार्थ इतना गाढ़ा होना चाहिए, जो की चम्मच तिरछी करने पर धीरे-धीरे टपके। इतना पतला न हो कि तुरन्त ही बह जाए या इतना गाढ़ा न हो की चम्मच तिरछी करने पर गिरे ही न।
बच्चे को खाना देने की मात्रा
7 वें माह से की अवधि में

नरम दाल - दलिया, दाल - चावल, दाल - रोटी मसलकर अर्ध ठोस (चम्मच से गिराने पर सरके, बहे नही), खूब मसले साग एवं फल, प्रतिदिन दो बार तथा मात्रा। 2 - 3 भरे हुए चाय के चम्मच दें। स्तनपान जारी रखें। वनस्पतियाँ, अनाज, दालें एवं फलों के साथ मांस, मछली एवं अण्डा यदि खाते हैं तो अव6य शामिल करें तथा नियमित स्तनपान भी जारी रखें।
8-9 वें माह से की अवधि में

नरम दाल - दलिया, दाल - चावल, दाल - रोटी, प्रतिदिन धीरे - धीरे मात्रा बढ़ाते हुए नियमित स्तनपान के साथ 2-3 बार चम्मच से 250 मिली0 या प्रत्येक भोजन में 35 कप अव6य शामिल करें एवं टुकडों में फल भी अवश्य दें।दूध, दूध से बने पदार्थ, अनाज, दालें एवं फलों के साथ मांस, मछली एवं अण्डा यदि खाते हैं तो अवश्य शामिल करें तथा नियमित स्तनपान भी जारी रखें।
9-11 माह से की अवधि में

नरम दाल - दलिया, दाल - चावल, दाल - रोटी, प्रतिदिन धीरे - धीरे मात्रा बढ़ाते हुए अच्छी तरह कटे हुए फल एवं बिना मसला आहार हुआ दिन में तीन बार दें तथा नियमित स्तनपान जारी रखें। एक बार में 250 मिली0 का कप भरकर आहार बच्चा प्रत्येक भोजन में ग्रहण करें।
12 माह - 5 वर्ष की अवधि में

घर पर पका पूरा खाना, धुले एवं कटे फल, 3 भोजन तथा 2 नाश्ते के रूप में दें, एक बार में 250 मिली0 का कप भरकर आहार बच्चा प्रत्येक भोजन में ग्रहण करें। स्तनपान के बीच में आहार देना चाहिए, नियमित स्तनपान जारी रखें।

6 माह तक जब बच्चा सिर्फ मॉ का दूध पीता है, तब कि उसे किसी भी भोज्य पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु जब उसे ऊपरी आहार दिया जाता है, तब पेय पदार्थ देना आवश्यक होता है।

पेय पदार्थ की मात्रा बच्चे को दिए गए भोजन के गाढ़ेपन एवं मां के दूध पर निर्भर करेगी।

यदि बच्चा बार-बार हल्के पीले रंग की पेशाब करता है, तो उसे पर्याप्त पेय पदार्थ दिए जा रहे हैं। यदि कम तथा गहरे रंग की पेशाब करता है, तब उसे अधिक पेय पदार्थ देने की आवश्यकता है।

बच्चे को दस्त लगने या बुखार आने पर उसे अधिक बार पेय पदार्थ देने चाहिए।

पानी के अलावा फलों के रस भी बच्चों को दिए जा सकते हैं, परन्तु बच्चे के दांतों की सुरक्षा के लिए यह रस पानी मिलाकर पतले दिए जाने चाहिए। रस इतना नहीं देना चाहिए बच्चा अन्य भोज्य पदार्थ न खा सके।

चाय या कॉफी बच्चे के आयरन के अवशोषण को कम करता है।

कोई भी पेय पदार्थ शुद्ध और साफ होना चाहिए। पानी उबला हुआ तथा ढककर साफ बर्तन में रखना चाहिए। पानी निकालते वक्त उसमें हाथ नहीं डालना चाहिए।
एनीमिया क्या है?

नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण हेतु जरूरी एक या एक से अधिक पोषक तत्वों की कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य से कम होना। किशोरी बालिकाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 ग्राम100 एमएल से कम होने पर एनीमिया कहलाता है।
एनीमिया के लक्षण

जो व्यक्ति एनीमिया से पीड़ित होता है उसकी जीभ, आंखों व नाखुनों का रंग फीका दिखाई देने लगता है। उसके पैरों में सूजन होती है। साँस फूलना और थकान महसूस होने लगती है। सा काम करने पर कमजोरी महसूस होती है।
एनीमिया के कारण

एनीमिया मुख्यत: भोजन में आयरन या लौह तत्व की कमी होने के कारण होता है। किसी व्यक्ति को बार-बार मलेरिया हो तब भी व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो सकता है। युवतियों और महिलाओं में माहवारी के दौरान अधिक खून बहना भी एनीमिया का एक कारण है। परजीविक कारण और काम के हिसाब से पोषण की कमी भी एनीमिया के रूप में सामने आती है। बच्चों में एनीमिया मुख्यत: मां से ही मिलता है।
किशोरावस्था में एनीमिया के दुष्प्रभाव

किशोरावस्था में एनीमिया होने के दुष्प्रभाव एक व्यक्ति के पूरे जीवन में दिखाई पड़ता है। इससे कार्यक्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ता है। भूख कम होने लगती है और सही पोषण नहीं मिलने से आयु के अनुसार शारीरिक वृद्धि नहीं हो पाती है। युवतियों में एनीमिया आगे जाकर उनकी गर्भावस्था को भी प्रभावित करता है और वह असुरक्षित मातृत्व के दौर से गुजरती है। यही कारण है कि यहां पर उच्च मातृत्व मृत्यु दर है। उनके बच्चे भी कम वनज के पैदा होते है, और कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।
आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया के नियंत्रण के तरीके

एनीमिया से बचने का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका यह है कि भोजन में संतुलित आहार की मात्रा बढ़ाई जाए। आहार की गुणवत्ता और पौष्टिकता को बढ़ाकर ही एनीमिया से स्थायी रूप से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके साथ ही मलेरिया से बचाव करके और सप्ताह में एक बार आयरन की गोली लेना भी फायदेमंद साबित हो सकता हैं कई चीजें ऐसी भी होती है जो भोजन में लौहतत्व के अभिशोषण को अवरूद्ध कर देती हैं। ऐसे पदार्थों से बचने की जरूरत है। आयरन युक्त आहार जैसे बाजारा, खजूर, गुड़, अंकुरित दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां (जैसे पालक, मैथी, बथुआ) अण्डा, माँस, मछली इत्यादि ज्यादा से ज्यादा करना होगा। विटामिन ''सी'' युक्त खाद्य पदार्थ जैस- नींबू, आंवला, संतरा, अमरूद आदि लेने से आयरन के अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है। लोहे की कढ़ाई में खाना बनाने की सलाह भी विशेष ज्ञों द्वारा दी जाती है। आयरन टेबलेट लेने के कुछ समय बाद कुछ मिचली अथवा काले रंग के दस्त होने की शिकायत हो सकती है। लेकिन ऐसी स्थिति में भी इन गोलियों का उपयोग बंद नहीं करना चाहिए।

इस के सर्वें के मुताबिक प्रदेश में 78 प्रतिशत किशोरियों को आयरन फोलिक एसिड की टेबलेट मिल पा रही है। यानी लगभग 22 प्रतिशत महिला और किशोरियोें को यह किसी भी रूप में नहीं मिल रही है। बड़ी चुनौती यह है कि कैसे हम सभी लोगों तक आयएफए टेबलेट पहुंचा सकें।

इंडियन कौंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के मुताबिक 5 सदस्य परिवार के लिए मासिक जरूरत –

सदस्य


अनाज (किलो)


दाल (किलो)


खाद्य तेल (ग्राम)

औसत मेहनत करने वाला पुरूष


14.4


27


1050

औसत मेहनत करने वाली महिला


10.8


2.25


900

1-6 वर्ष का बच्चा


5


1.1


675

7-12 वर्ष का बच्चा


9


1.8


750

बुजुर्ग तीसरा बच्चा


9


1.8


675

कुल


482


9.65


4050



मोटे अनाज की पौष्टिकता अन्य अनाजों की तुलना में ज्यादा होती है।

अनाज


प्रोटीन (ग्राम)


रेशा (ग्राम)


मिनरल (ग्राम)


आयरन (मिग़्राम)

बाजरा


10.6


1.3


2.3


16.9

रागीनाचनी


7.3


3.6


2.7


3.9

कांगभादी


12.3


8


3.3


2.8

कोदो


8.3


9


2.6


0.5

कुटकी


7.7


7.6


1.5


9.3

सावाबट्टी


11.2


10.1





15.2

चावल


6.8


0.2


0.6


0.7

गेहूं


11.8


1.2


1.5


5.3
ध्यान देने योग्य बातें

एक जवान बच्चे बड़े होते हैं और तेजी से वजन हासिल करना चाहिए। 2 साल की उम्र के जन्म से, बच्चों के विकास का आकलन करने के लिए नियमित रूप से तौला जाना चाहिए। अकेली मां का दूध ही खाना है और जीवन के पहले छह महीनों में एक शिशु की जरूरत पीते हैं। छह महीने के बाद, एक बच्चे को स्वस्थ विकास और विकास सुनिश्चित करने के लिए मां का दूध के अलावा अन्य खाद्य पदार्थों की एक किस्म की जरूरत है।
स्तनपान के अलावा



एक बच्चा 9 महीने से शुरू प्रति दिन दो से तीन गुना है और प्रति दिन तीन से चार बार खाने की जरूरत 6-8 महीने की उम्र से। बच्चे की भूख पर निर्भर करता है, इस तरह के अखरोट पेस्ट के साथ फल या रोटी के रूप में एक या दो पौष्टिक नाश्ता, भोजन के बीच की जरूरत हो सकती है। बच्चे को वह या वह बढ़ता है के रूप में तेजी से विविधता और मात्रा में वृद्धि हुई है कि भोजन की थोड़ी मात्रा खिलाया जाना चाहिए।
दूध पिलाने बार शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास और विकास को बढ़ावा देने, जो शिक्षा, प्रेम और बातचीत की अवधि के हैं। माता-पिता या अन्य देखभालकर्ता खिलाने के दौरान बच्चों के लिए बात करते हैं, और इलाज के लिए और समान रूप से और धैर्य से लड़कियों और लड़कों के खिलाना चाहिए।
बच्चे, बीमारी का विरोध करने में मदद उनकी दृष्टि की रक्षा और मौत के खतरे को कम करने के लिए विटामिन ए की जरूरत है। विटामिन ए कई फलों और सब्जियों, लाल ताड़ के तेल, अंडे, डेयरी उत्पाद, जिगर, मछली, मांस, दृढ़ खाद्य पदार्थ और मां के दूध में पाया जा सकता है। ए की कमी आम बात है जहां विटामिन क्षेत्रों में, उच्च खुराक में विटामिन ए की खुराक भी 5 साल के लिए 6 महीने आयु वर्ग के बच्चों को हर चार से छह महीने के लिए दिया जा सकता है।
बच्चों को उनके शारीरिक और मानसिक क्षमताओं की रक्षा के लिए और एनीमिया को रोकने के लिए लौह युक्त खाद्य पदार्थों की जरूरत है। लोहे का सबसे अच्छा स्रोत जैसे जिगर, दुबला मांस और मछली के रूप में पशु स्रोतों, कर रहे हैं। अन्य अच्छे स्रोत लौह दृढ़ खाद्य पदार्थ और लोहे के पूरक हैं।
एक गर्भवती महिला और युवा बच्चे के आहार में आयोडीन बच्चे के मस्तिष्क के विकास के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह सीखना विकलांग और देरी के विकास को रोकने में मदद करने के लिए आवश्यक है। आयोडीन युक्त नमक के बजाय साधारण नमक का प्रयोग गर्भवती महिलाओं और के रूप में ज्यादा आयोडीन की जरूरत है वे के रूप में के साथ अपने बच्चों को प्रदान करता है।
खाद्य पदार्थ और पेय बढ़ जाती है की बच्चे के सेवन के रूप में, दस्त का खतरा काफी हद तक बढ़ जाती है। कीटाणुओं के साथ खाद्य पदार्थों का संदूषण दस्त और बच्चों के विकास और विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों और ऊर्जा खोने के लिए कारण है कि अन्य बीमारियों का एक प्रमुख कारण है। अच्छा स्वच्छता, सुरक्षित पानी और उचित हैंडलिंग, तैयारी और खाद्य पदार्थों के भंडारण की बीमारियों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
एक बीमारी के दौरान बच्चों अतिरिक्त तरल पदार्थ और प्रोत्साहन नियमित रूप से भोजन खाने की जरूरत है, और स्तनपान शिशुओं को अधिक बार स्तनपान की जरूरत है। एक बीमारी के बाद, बच्चों को बीमारी की वजह से खो ऊर्जा और पोषण की भरपाई करने के लिए सामान्य से अधिक भोजन की पेशकश की जा करने की जरूरत है।

विशेष चिकित्सा देखभाल

बहुत पतली और / या सूजन बच्चों को विशेष चिकित्सा देखभाल की जरूरत है।आपके बच्‍चों को पोषणयुक्‍त आहार देने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:

अपने बच्‍चे को विभिन्‍न प्रकार के पौष्टिक आहार जैसे पत्तेदार हरी सब्जियां, ताजे फल, फलियां और इसी प्रकार के अन्‍य आहार दें।
अपने बच्‍चे को भरपूर अनाज खाने के लिए प्रोत्‍साहित करें, परन्‍तु उनमें अधिमानत: साबुत अनाज खाने की आदत डालें।
बच्‍चे के विकास के लिए दूध व दूध से बनी वस्‍तुएं बहुत आवश्‍यक हैं। ये कैल्शियम के अच्‍छे स्रोत के रूप में काम करते हैं जिनसे दांत व हड्डियां मजबूत बनते हैं। दो वर्ष से कम आयु के बच्‍चों के लिए मलाई निकाले हुए कम चिकनाई युक्‍त दूध लेने की सिफारिश नहीं की जाती है, परन्‍तु किशोरवय बच्‍चे और तरुण निश्चित रूप से कम चिकनाई युक्‍त दूध की किस्‍म ले सकते हैं।
जहां तक मांसाहारी भोजन लेने का प्रश्‍न है, अपने बच्‍चों को बिना चरबी का मांस, मछली और मुर्गा-मुर्गी लेने के लिए प्रोत्‍साहित करें।
किशोरवय बच्‍चों के द्वारा मद्यसार (एल्‍कोहल) करने की बिल्‍कुल सिफारिश नहीं की जाती है।
ऐसी खाद्य सामग्रियों का चयन करें जिनमें नमक व मसाले कम हों।
ऐसा भोजन लेने से परहेज करें जिनमें चीनी और चिकनाई की मात्रा अधिक है।
जहां भोजन पकाने की बारी आती है, तो पकाने के लिए भपारा (भाप में पकाने), उबालने और पकाने (बेकिंग) का प्रयोग करें न कि तलने का। तलने में तेल का अधिक प्रयोग होता है, और इस प्रकार खाद्य वस्‍तु में कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है, परन्‍तु पोषण तत्‍व कम हो जाते हैं।

महिला और पोषण

महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही संतुलित भोजन, पर्याप्त नींद, भरपूर पानी और नियमित रूप से व्यायाम करने की जरूरत होती है। नौ साल तक के लड़के और लड़कियों को एक समान पोषक तत्वों की जरूरत होती है। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ शारीरिक परिवर्तनों के कारण दोनों की पोषक तत्वों की जरूरतें बदल जाती हैं। एक युवा पुरुष को प्रतिदिन 2000-2500 कैलोरी की आवश्यकता होती है, जबकि उसी आयु की महिला को 1800-2200 कैलोरी की। लेकिन इन आंकड़ों से यह नहीं समझना चाहिए कि महिलाओं के शरीर को पोषक तत्वों की भी कम आवश्यकता होती है। सच्चाई तो यह है कि एक महिला को अपने हम उम्र पुरुष के मुकाबले ज्यादा पोषक तत्वों की जरूरत होती है।
क्यों चाहिए हमें ज्यादा पोषक तत्व

महिलाओं की शारीरिक बनावट नाजुक होने के साथ ही जटिल भी होती है। उन्हें बीमारियों का खतरा तो पुरुषों की तरह ही होता है, लेकिन मासिक धर्म, गर्भावस्था, स्तनपान और मेनोपॉज के कारण महिलाओं को कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि खुद को फिट और स्वस्थ रखने के लिए महिलाएं अपनी शारीरिक जरूरतों को समझों। 19 से 50 साल की महिलाओं को प्रतिदिन 18 मिलीग्राम आयरन की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था के समय तो आयरन की आवश्यकता और बढ़ जाती है। लेकिन इसी आयु सीमा के पुरुषों को प्रतिदिन सिर्फ 8 मिलीग्राम आयरन की आवश्यकता होती है। 50 से कम उम्र की महिलाओं को प्रतिदिन 1,000 मिलीग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है, जबकि 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को 1,500 मिलीग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है। पुरुषों को महिलाओं के मुकाबले न सिर्फ कैल्शियम की आवश्यकता कम होती है, बल्कि उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा भी कम होता है। विशेषकर गर्भवती महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले फॉलिक एसिड और विटामिन बी6 की आवश्यकता भी अधिक होती है, ताकि गर्भस्थ शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास ठीक तरह से हो सके। प्रोटीन भी महिलाओं के लिए आवश्यक पोषक तत्व है। मेनोपॉज के बाद जिन महिलाओं के भोजन में प्रोटीन की मात्र कम होती है, उनमें ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। जिन महिलाओं के भोजन में कैल्शियम की मात्रा कम होती है, उनमें ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका 25 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। जो महिलाएं गर्भ निरोधक गोलियां लेती हैं उनके शरीर को आयरन की आवश्यकता सामान्य महिलाओं से अधिक होती है।
महिलाओं के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ

पालक

सभी हरी पत्तेदार सब्जियां आयरन और कैल्शियम से भरपूर होती हैं। पर पालक आयरन के सबसे अच्छे स्नोतों में से एक है। 100 ग्राम पालक प्रतिदिन के आयरन की आवश्यकता के 25 प्रतिशत की, विटामिन सी की 47 प्रतिशत की, विटामिन के की 40 प्रतिशत की पूर्ति करता है। पालक की पत्तियों में विटामिन ए, फ्लेवोनाइड और बीटा-केरोटिन भी भरपूर मात्र में होते हैं। यह विटामिन बी कॉम्पलेक्स और फोलेट का भी अच्छा स्त्रोत है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह काफी उपयोगी है। यह बच्चों में न्यूरल टय़ूब की खराबी को रोकता है। पालक में कई मिनरल जैसे पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, कॉपर और जिंक अच्छी मात्र में होते हैं। कॉपर लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है और मैग्नीशियम मेनोपॉज के बाद महिलाओं का वजन बढ़ने और स्तन को ढीला होने से रोकता है। पालक को ज्यादा देर तक भाप में न पकाएं, न उबालें, न ही तलें। ऐसा करने से इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट नष्ट हो जाते हैं।

टमाटर

टमाटर में सेब से भी ज्यादा पोषक तत्व होते हैं। इसमें कैलोरी काफी कम होती है। 100 ग्राम टमाटर में सिर्फ 18 कैलोरी होती है। यह विटामिन ए, सी, एंटी आक्सीडेंट, अल्फा और बीटा कैरोटिन, जैनथेनियम और ल्युटिन का अच्छा स्रोत होता है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी है। इसमें विटामिन बी कॉम्प्लेक्स और कई मिनरल जैसे आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम भरपूर मात्र में होते हैं। टमाटर में लाइकोपीन होता है, जो महिलाओं में स्तन कैंसर को रोकने में काफी प्रभावी है। लाइकोपीन व एंटीऑक्सीडेंट महिलाओं के लिए गर्भधारण की उम्र में काफी उपयोगी होते हैं। ये गर्भधारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। महिलाओं की त्वचा नाजुक होती है, इसलिए उनमें उम्र बढ़ने के साथ पिग्मेंटेशन की समस्या बढ़ जाती है। टमाटर में मौजूद लाइकोपीन पिग्मेंटशन की समस्या को भी कम करता है। टमाटर को जितना हो सके सलाद या जूस के रूप में कच्चा खाएं क्योंकि पकाने से इसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

अखरोट

अखरोट को मेवों का राजा कहा जाता है। वैसे तो सभी सूखे मेवे हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छे होते हैं, पर हाल के अनुसंधानों में यह बात सामने आई है कि अखरोट में कई ऐसे पोषक तत्व होते हैं, जो महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं। यह प्रोटीन का अच्छा स्नोत है। इसमें विटामिन बी कॉम्पलेक्स विशेषकर बी6 व कई मिनरल जैसे आयरन, मैग्नीशियम, कॉपर और जिंक काफी मात्रा में होते हैं। अखरोट में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, एंटीअक्सीडेंट आदि महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा कम करते हैं। ये गठिया के दर्द और अवसाद को भी कम करते हैं।

अंजीर

ताजे और सूखे दोनों अंजीर सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। अंजीर में आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्र में होते हैं, जो महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी मिनरल होते हैं। ताजे अंजीर फायटो न्यूट्रीएंट्स, एंटी आक्सीडेंट और विभिन्न विटामिनों के भी अच्छे स्रोत होते हैं, जबकि सूखा अंजीर कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीशियम, आयरन, सेलेनियम व जिंक का अच्छा स्नोत होता है। ताजे अंजीर को सलाद के रूप में या आइसक्रीम में डालकर खाया जा सकता है। सूखे अंजीर को दूध में उबालकर पी सकती हैं।

चुकंदर

कच्चा चुकंदर फोलेट का एक अच्छा स्रोत होता है। इसके प्रति 100 ग्राम में 109 माइक्रो ग्राम फोलेट होता है। फोलेट कोशिका में डीएनए और आरएनए के निर्माण के लिए आवश्यक है। यह विटामिन ए, विटामिन बी कॉम्पलेक्स, कैरोटिनाइड्स और फ्लेवोनाइड्स का अच्छा स्रोत है। इसमें आयरन भरपूर होता है, जो पीरियड्स के दौरान हीमोग्लोबिन की कमी की भरपाई करता है और गर्भवती महिलाओं में बच्चे के विकास में सहायक होता है। चुकंदर को सलाद के रूप में गाजर, मूली, खीरे और पत्ता गोभी के साथ कच्चा खाएं।

मछली

स्तन कैंसर व गर्भाशय के कैंसर के मामले महिलाओं में बढ़ते ही जा रहे हैं। ओमेगा3 फैटी एसिड इससे रक्षा करता है। मछलियां विशेषकर सालमन, सार्डिनेस, मैकेरल में ओमेगा3 फैटी एसिड भरपूर होता है। ये प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत हैं। इनमें विटामिन डी, बी2, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, जिंक, आयोडीन, मैग्नीशियम, पोटेशियम काफी मात्र में होते हैं।

अंडे

अंडे आयरन, जिंक और फास्फोरस जैसे मिनरल से भरपूर होते हैं। आयरन महिलाओं में रक्त की कमी पूरी करता है, जिंक इम्यून सिस्टम अच्छा रखता है और फास्फोरस स्वस्थ हड्डियों व दांतों के लिए जरूरी है। अंडे के पीले भाग में करीब 300 माइक्रो ग्राम कोलिन होता है, जो स्तन कैंसर के खतरे को कम करता है। जो महिलाएं एक सप्ताह में करीब छह अंडे खाती हैं, उनमें अंडे नहीं खाने वाली महिलाओं की तुलना में स्तन कैंसर का खतरा 44 प्रतिशत कम हो जाता है।

दूध

हाल में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि बीस साल व उससे अधिक उम्र की 10 में से 9 महिलाओं की प्रतिदिन की कैल्शियम की आवश्यकता पूरी नहीं होती। दूध कैल्शियम का अच्छा स्रोत है। गर्भावस्था में व स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए दूध का सेवन करना और भी जरूरी है। दूध में कैल्शियम के अलावा प्रोटीन, पोटेशियम, फास्फोरस, विटामिन ए, डी, बी12, राइबोफ्लेविन व नियासिन प्रमुख रूप से पाया जाता है। दूध और दूध से बने उत्पाद हड्डियों को मजबूत बनाने, दांतों व मांसपेशियों के निर्माण में मदद करते हैं।

अंकुरित खाद्य पदार्थ

अंकुरित अनाज में काफी मात्र में फाइटोकेमिकल्स होते हैं, जो कई बीमारियों से हमारी रक्षा करते हैं। ये हड्डियों के घनत्व को बढ़ाते हैं, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम हो जाता है। ये हॉट फ्लेशेज, मेनोपॉज, पीरियड्स के समय होने वाली तकलीफों और स्तन कैंसर के खतरे को भी कम करते हैं। अंकुरित अनाज में काफी मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं, जो डीएनए को नष्ट होने से बचाते हैं और बुढ़ापे के लक्षणों को रोकते हैं। ये कोशिकाओं के पुनर्निर्माण में बहुत उपयोगी हैं। ये मिनरल और विटामिन के अच्छे स्रोत भी हैं। एक प्याला अंकुरित अनाज खाने से शरीर की प्रतिदिन की 25 प्रतिशत मिनरल और विटामिन संबंधी जरूरतों की भरपाई हो जाती है, इसलिए इसे सुपर फूड भी कहा जाता है।,
कुपोषण को दूर करने के लिए सामुदायिक पहलों को बढ़ावा

आज के विकासशील विश्‍व में भारत में कुपोषण के सर्वाधिक मामले हैं जिनका कारण जानकारी और जागरुकता का अभाव गरीबी तथा पर्याप्‍त और संतुलित आहार का न होना है। इसके कारण कुपोषण तथा न्‍यूनपोषण होता है जो शिशुओं और बच्‍चों के शारीरिक और संज्ञानात्‍मक विकास को अवरूद्ध करता है और व्‍यस्‍कों की कार्य क्षमता और उत्‍पादकता को कम करता है और बच्‍चों, महिलाओं और पुरूषों में मृत्‍यु पर और रुग्‍णता को बढ़ाता है। कम उत्‍पादकता से अर्जन क्षमता कम हो जाती है जिसके परिणामत: गरीबी उत्‍पन्‍न होती है और यही क्रम चलता रहता है।

किसी राष्‍ट्र की जनसंख्‍या का स्‍वास्‍थ्‍य और पोषणीय स्थिति किसी देश के विकास का महत्‍वपूर्ण सूचक होती है। मृत्‍यु दर, सूक्ष्‍म पोषकों की कमी और कुपोषण कुछ ऐसे सूचक हैं जिनका देश की स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी स्थिति का मूल्‍यांकन करने में उपयोग किया जा सकता है।
न्‍यून पोषण

न्‍यून पोषण एक ऐसा महत्‍वपूर्ण कारक है जिसके कारण शिशु और मातृत्‍व मृत्‍यु दर अधिक होती है और बच्‍चों में जन्‍म के समय वज़न कम होता है। एनएफएचएस 2 आंकड़ों के अनुसार 40.6 प्रतिशत भारतीय ग्रामीण महिलाओं का वज़न कम होता है। इसके साथ कम उम्र में और बार-बार माँ बनना मातृत्‍व मृत्‍यु दर में वृद्धि और बच्‍चों में जन्‍म के समय कम वजन होने का प्रमुख कारक हैं।

53.9 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं अनीमिया से ग्रस्‍त हैं (एनएफएचएस 2) जिसमें से 2 प्रतिशत महिलाएं गंभीर अनीमिया से ग्रस्‍त हैं और 36.1 प्रतिशत महिलाएं मृदु अनीमिया से पीडित हैं। कुल गर्भवती महिलाओं का लगभग 49.7 प्रतिशत अनीमिया से ग्रस्‍त हैं जिसमें 2 प्रतिशत महिलाएं गंभीर अनीमिया से ग्रस्‍त है। अनीमिया का महिलाओं और बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और यह मातृत्‍व और प्रसव पूर्व मृत्‍यु का महत्‍वपूर्ण कारण है। अनीमिया के कारण समय से पूर्व डिलीवरी तथा जन्‍म के समय कम वजन का खतरा बढ़ा जाता है। (शेषाद्रि 1997)। अनीमिया का एक प्रत्‍यक्ष परिणाम कम आर्थिक उत्‍पादकता है।
मातृत्‍व मृत्‍यु दर

विश्‍वभर में प्रत्‍येक वर्ष लगभग 500000 महिलाओं की मृत्‍यु गर्भावस्‍था व बच्‍चे के जन्‍म से जुड़े कारणों से होती है और इनमें से अधिकांश मृत्‍यु विकासशील देशों में होती हैं। (डब्‍ल्‍यू एच ओ 1999)। एनएफएचएस 2 से दो वर्ष पूर्व राष्‍ट्रीय स्‍तर पर औसत मातृत्‍व मृत्‍यु अनुपात 540 मृत्‍यु प्र‍ति 100000 जीवित जन्‍म था। शहरी एमएमआर की तुलना में ग्रामीण एमएमआर (619) काफी अधिक है। इसका कारण न्‍यून पोषण, स्‍वास्‍थ्‍य देख रेख संबंधी सुविधाओं तक पहुंच न होना तथा स्‍वस्‍थ पोषणीय पद्वतियों और टीकाकरण के बारे में जागरुकता न होना है। एनएफएचएस 2 आंकड़ों के अनुसार 39.8 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं का गर्भावस्‍था के दौरान प्रसव पूर्व जांच नहीं होती है जिसके कारण एमएमआर और आईएमआर में वृद्धि होती है।
जन्‍म के समय कम वज़न का होना

कुल जन्‍में शिशुओं में से 22.7 प्रतिशत का वजन कम होता है। उनकी शैशवकाल में मृत्‍यु का जोखिम काफी अधिक होता है। यदि वे जीवित बच भी जाते हैं तो उनकी क्षय हुई वृद्धि नहीं हो पाती और वे कई विकास संबंधी कमियों के प्रति संवेदनशील होता है। यही नहीं कोलस्‍ट्रम न देने से नए जन्‍में शिशुओं में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। एनएफएचएस 2 के आंकड़ों के अनुसार केवल 64 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं और 58.8 प्रतिशत शहरी महिलाएं स्‍तनों से पहला दूध पिलाती हैं। यह समस्‍या तब और गंभीर हो जाती है जब अनुपूरक दूध पिलाने में देरी हो जाती है जो कई बाद एक वर्ष होती है।
शिशु और बाल मृत्‍यु दर

शिशु और बाल मृत्‍यु दर देश में सामाजिक आर्थिक विकास और जीवन की गुणवत्ता को दर्शाते हैं और इनका उपयोग जनसंख्‍या और स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रमों तथा नीतियों की मानीटरिंग और मूल्‍यांकन करने के लिए किया जाता है (एनएफएचएस 2)। नवजात मृत्‍यु दर, शिशु मृत्‍यु दर, बाल मृत्‍यु दर, पांच वर्ष से कम आयु के बच्‍चों की मृत्‍यु दर का उपयोग शिशु और बाल मृत्‍यु दर का प्राक्‍कलन करने के लिए किया जा सकता है। भारत में शिशु मृत्‍यु दर 67.6 प्रतिशत 1000 जीवित जन्‍म है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों के 47.0 की तुलना में शिशु मृत्‍यु दर 73.3 है। शहरी बच्‍चों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बच्‍चों के पांच वर्ष की आयु से पूर्व मृत्‍यु की संभावना 70 प्रतिशत है जो स्‍पष्‍ट रूप से दर्शाता है कि ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य, पोषणीय और गरीबीरोधी कार्यक्रमों को सुदृढ़ बनाए जाने की आवश्‍यकता है। यद्यपि पिछले कई वर्षों से शिशु और बाल मृत्‍यु दर में काफी कमी हुई है लेकिन कमी के बावजूद अन्‍य देशों की तुलना में भारत में शिशु और बाल मृत्‍यु दर बहुत अधिक है। उदाहरणार्थ अमेरिका में शिशु मृत्‍यु दर 6.9 प्रति 1000 जीवित जन्‍म है (सेंटर फार डिसीज़ कंट्रोल, 2000)। यहां तक कि मौक्‍सको और चीन में भी अन्‍य देशों की तुलना में शिशु मृत्‍यु दर काफी कम, क्रमश: 25 और 27 है। ये सभी पहलू कुपोषण और न्‍यून पोषण से संबंधित हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बढ़ते जाते हैं, परिणामत: कुपोषण और खराब स्‍वास्‍थ्‍य का चक्र चलता रहता है।
अपर्याप्‍त भोजन और स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल

बच्‍चे को दूध छुड़ाने के सही समय के साथ-साथ भोजन की मात्रा और गुणवत्ता भी समान रूप से महत्‍वपूर्ण है। गरीबी और अनभिज्ञता के कारण बच्‍चे को अपर्याप्‍त मात्रा में भोजन दिया जाता है जिनमें पानी की मात्रा अधिक होती है और बच्‍चे की पोषण संबंधी आवश्‍यकताओं की पूर्ति करने में पर्याप्‍त नहीं होता। यही नहीं यदि भोजन साफ बर्तनों में स्‍वच्‍छता से तैयार नहीं किया जाता तो बच्‍चा अधिक संक्रमणों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।

समस्‍या बालिका शिशु के मामले में और बढ़ जाती है जिसे बालक शिशु की तुलना में कमतर समझा जाता है। जब लड़की किशोरवस्‍था में पहुंचती है तो उसके कुपोषित और अनीमियाग्रस्‍त होने तथा संज्ञानात्‍मक और शारीरिक क्षति होने की संभावना होती है। अक्‍सर उसका कम उम्र में विवाह कर दिया जाता है जिसके परिणाम शीघ्र मां बनना और बहु-गर्भावस्‍था होता है। चूंकि मां कुपोषित और अनीमियाग्रस्‍त होती है इसका गर्भस्‍थ शिशु पर प्रतिकूल पड़ता है और वह अंतरा गर्भाशय विकास मंदन (इंटरायूटाइन ग्रोथ रिटार्डेशन) से ग्रस्‍त हो जाता है जिससे जन्‍म के समय वज़न कम होता है।
कुपोषण और खराब स्‍वास्‍थ्‍य का निरंतर चक्र

अल्‍प पोषित व्‍यक्ति संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होता है। संक्रमण शरीर की ऊर्जा मांग को बढ़ा देते हैं जिसकी यदि पूर्ति नहीं होती तो कुपोषण और बढ़ जाता है। कुपोषण प्रतिरक्षा को कम कर देता है और बच्‍चे को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है। सुरक्षित पेयजल व्‍यक्तिगत और घरेलू अस्‍वच्‍छता आंत संबंधी बीमारियों और संक्रमणों का मुख्‍य कारण रहा है और यह कुपोषण की स्थिति को और बिगाड़ देता है।
कुपोषण की समस्‍या से निपटने के लिए रणनीति

कुपोषण की समस्‍या से निपटने के लिए छोटे स्‍तर पर कार्रवाई से लाभ नहीं होगा। गरीबी और कुपोषण के मद्देनजर विकासात्‍मक रणनीति जिसमें गरीबी, बेरोजगारी और कुपोषण को दूर किए जाने की नीति शामिल हो, प्राथमिकता होनी चाहिए।

जो कुपोषण को दूर करने और आय सृजन करने संबंधी कार्यकलाप आरंभ करने के दोहरे उद्देश्‍य की पूर्ति करता है। योजना का उद्देश्‍य न केवल जागरुकता करना है और समुदाय की पोषणीय स्थिति को भी सुधारना है बल्कि लोगों के जीवन स्‍तर को सुधारने के लिए आय सृजन हेतु कौशल प्रदान करना भी है।

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