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आईवीएफ ट्रीटमेंट के बाद इंप्लांट के लगभग दाे हफ्ते बाद भी महिलाओं को अक्सर ब्लीडिंग या स्पॉटिंग होती है। इसके अलावा हार्मोंस में उतार-चढ़ाव की वजह से प्रेग्नेंसी में सिरदर्द होना भी आम बात है। अगर आपको आईवीएफ के दो सप्ताह के बाद सिरदर्द की शिकायत होने लगी है, तो यह प्रेग्नेंसी का शुरुआती लक्षण हो सकता है।
मासूम के मुँह से मम्मी-पापा सुनना हर दम्पती की सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है लेकिन ये नियामत सभी दम्पतियों को नहीं मिल पाती । ऐसे कपल्स के लिए आईवीएफ अंधेरी रात में रोशनी बनकर सामने आयी है। 1978 में ब्लाॅक ट्यूब वाली महिलाओं को संतान सुख देने के लिए इस तकनीक को ईज़ात किया गया, बाद में इसमें आयी नवीन तकनीकों से 80 लाख से ज्यादा परिवारों में खुशियाँ खिलखिला रही हैं। कुछ केसेज में सब ठीक होने के बाद भी आईवीएफ में सफलता नहीं मिल पाती, इस कारण दम्पती निराश हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में सवाल यह उठता है कि आईवीएफ में सफलता कैसे पायी जाए ?
महिला और पुरूष में तुलना की जाए तो महिलाओं में उम्र के साथ गर्भधारण के चांसेज कम होते जाते हैं क्योंकि प्रेग्नेंसी के लिए अण्डों की क्वालिटी व संख्या मायने रखती है और उम्र बढ़ने के साथ इसमें कमी आने लगती है। आईवीएफ से अधिक उम्र में भी गर्भधारण किया जा सकता है लेकिन इसमें निःसंतानता की समस्या के अनुसार परिणाम भी अलग-अलग हो सकते हैं। आईवीएफ प्रक्रिया की सफलता बहुत सारी बातों पर निर्भर करती है।
यह बात सही है कि समय के साथ आईवीएफ की सफलता दर काफी बढ़ गयी है लेकिन आईवीएफ प्रक्रिया से संतान प्राप्ति की कोई गारंटी नहीं होती है। जो दम्पती आईवीएफ प्रक्रिया से उपचार करवाना चाहते हैं उनके लिए सर्वप्रथम सेंटर का चयन महत्वपूर्ण है। कम खर्च या घर के नजदीक होने की लालच में नहीं पड़कर अच्छी सफलता दर, अनुभवी चिकित्सक, नवीनतम आईवीएफ लैब वाले सेंटर सेंटर का चुनाव करें। अगर आप पहले आईवीएफ करवा चुके हैं तो असफल होने के कारण जानना तथा पहली बार आईवीएफ अपना रहे हैं तो निःसंतानता के कारण जानने के लिए पति-पत्नी दोनों की जांचे आवश्यक है।
आईवीएफ प्रक्रिया शुरू करवाते समय दम्पती के दिमाग में कई तरह की उलझने होती हैं लेकिन शारीरिक तथा मानसिक संकल्प के साथ उपचार शुरू करवाने से आपको आसानी रहेगी।
सक्सेज के लिए क्या करें –
वैसे आईवीएफ की एक साईकिल की सफलता दर लगभग 35 से 40 प्रतिशत तक रहती है लेकिन अच्छे सेंटर के चयन से यह 70 प्रतिशत तक भी हो सकती है। आईवीएफ की सफलता के लिए जितना कार्य डाॅक्टर का होता है उतना ही मरीज का भी होता है, पूरी प्रक्रिया के दौरान सकारात्मक होकर सहयोग करना चाहिए। डाॅक्टर और सेंटर से आप कितने संतुष्ट हैं ? आपको उपचार से संतुष्टि होगी तो आप परिणाम को लेकर तनाव नहीं लेंगे तथा अतिउत्साह भी नहीं रखेंगे । आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान खाने-पीने में थोड़ा ध्यान रखने की जरूरत होती है, बाहर के खाने से दूरी रखें क्यांेकि इससे डायरिया, गला खराब और खांसी की परेशानी हो सकती है।
डायबिटिज और टीबी की जांच भी आवश्यक है ताकि उपचार प्रभावित नहीं हो।
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