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डॉक्टर्स और साइंटिस्ट के अनुसार एक बच्चे को जन्म देते समय महिला को बीस हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द होता है। महिलाओं को 57 डेल (दर्द नापने की इकाई) होने वाले इस दर्द की तुलना में पुरुषों की सिर्फ 45 डेल तक दर्द सहने की क्षमता है। इससे ज्यादा दर्द होने पर पुरुष की मौत संभव है।
प्रदेश में सरकारी स्तर पर पहली बार ऐसा सफल रिसर्च हुआ है, जिसके जरिए प्रसव पीड़ा को अस्सी फीसदी तक कम कर दिया गया है। आरएनटी मेडिकल कॉलेज के एनीस्थिसिया विभाग की ओर से एमबी हॉस्पिटल में पिछले एक साल में 60 प्रसूताओं का लंबर एपिड्यूरल एनाल्जेसिया तकनीक से प्रसव कराया गया।
आरएनटी में 60 महिलाओं पर रिसर्च
इस दौरान अमूमन 10 प्वाइंट तक रहने वाला वेस स्कोर (प्रवस के दौरान स्क्रीन के जरिए दर्द नापने की इकाई) मात्र दो प्वाइंट तक आ गया। डॉक्टर्स और साइंटिस्ट के अनुसार एक बच्चे को जन्म देते समय महिला को बीस हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द होता है। महिलाओं को 57 डेल (दर्द नापने की इकाई) होने वाले इस दर्द की तुलना में पुरुषों की सिर्फ 45 डेल तक दर्द सहने की क्षमता है। इससे ज्यादा दर्द होने पर पुरुष की मौत संभव है।
पेनलेस प्रसव वाला पहला अस्पताल
एनीस्थिसिया और क्रिटिकल केयर विभागाध्यक्ष डॉ. इंदिरा कुमारी का दावा है कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में रूटीन में पेनलेस प्रसव वाला यह पहला अस्पताल है। सबसे बड़ी बात यह रही कि सभी केस में नॉर्मल डिलीवरी की गई है। इस तकनीक से रोजाना दो से तीन डिलीवरी केस कर रहे हैं।
नई तकनीक पर हो रहा रिसर्च
एचओडी डॉ. इंदिरा कुमारी ने बताया कि अब विभाग ड्यूरल पंक्चर एपिड्यूरल नाम की तकनीक पर रिसर्च कर रहा है। ऐसी तकनीक पर भारत के किसी भी मेडिकल कॉलेज में रिसर्च नहीं हो रही है। इसमें ड्रग को इंजेक्ट करने की जरूरत भी नहीं रहेगी। सफलता मिलने पर इसके और भी फायदे सामने आएंगे। विभाग को अब चार लाख रुपए लागत वाली पेशेंट कंट्रोल एपिड्यूरल मशीन का इंतजार है। इसमें ड्रग की मात्रा को मरीज खुद कंट्रोल कर सकेगा।
वरदान साबित हो सकता है यह रिसर्च
-कई महिलाएं मां बनने से सिर्फ इसलिए इंकार कर देती हैं क्योंकि वे डरती है कि उन्हें प्रसव के दौरान स्तरीय मेडिकल सुविधाएं नहीं मिलेगी।
- सामान्य डिलीवरी में लेबर पैन शुरू होने से लेकर डिलीवरी तक करीब 5 घंटे लगते हैं। इस तकनीक के अधिकांश मामलों में पेन से लेकर डिलीवरी तक अधिकतम 4 घंटे से भी कम समय लगता है।
-मातृ शिशु मृत्यु दर में राजस्थान तीसरे नंबर पर है। हर साल पांच हजार तीन सौ महिलाओं और 63 हजार शिशुओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। गैर सरकारी आंकड़े इससे भी तीन गुना है।
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