प्रेगनेंसी सोनोग्राफी कब कब होती है?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:26

प्रेगनेंसी के दौरान कब और कितनी बार अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए ?

भारत में जन्मदोष के मामले सबसे अधिक है। लगभग 33 में से 1 बच्चे में जन्मदोष होता है। इस परेशानी का निदान प्रसव से पहले भी किया जा सकता है, जिसमें प्रेगनेंसी अल्ट्रासाउंड को प्रभावकारी माना गया है (1)। गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करवाने के फायदे और नुकसान, हर गर्भवती महिला समझना चाहती है। इसी वजह से हम यह लेख लेकर आए हैं, जिसमें प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड व सोनोग्राफी से जुड़ी सारी जानकारी विस्तार से दी गई है।

सबसे पहले यह जानिए कि अल्ट्रासाउंड क्या है।
अल्ट्रासाउंड क्या होता है?

अल्ट्रासाउंड एक तरह का इमेजिंग टेस्ट है, जिसे सोनोग्राम भी कहा जाता है। यह शरीर के अंदर के अंग, ऊतकों और अन्य संरचनाओं की पुष्टि करने के लिए उनकी तस्वीर बनाता है। इसमें ध्वनि तरंगों का उपयोग होता है। यह शरीर के अंदर हो रही गतिविधियों जैसे, दिल की धड़कन या रक्त वाहिकाओं में बहने वाली रक्त की छवि भी दिखा सकता है (2)। यह गर्भवती महिला के अंदरुनी अंगों के साथ ही गर्भ में बच्चे के विकास की तस्वीर भी दिखाता है (3)।


गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड के प्रकार

गर्भावस्था के चरण व गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के आधार पर प्रेगनेंसी में कई प्रकार के अल्ट्रासाउंड कराने की सुविधा उपलब्ध है। इनके बारे में नीचे विस्तार से समझेंगे।

ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड (Transvaginal Ultrasound)

गर्भावस्था में किए जाने वाले इस ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड में योनि के माध्यम से महिला के प्रजनन अंगों जैसे गर्भाशय, अंडाशय व फैलोपियन ट्यूब आदि की स्थिति का परीक्षण किया जाता है। इस अल्ट्रासाउंड को करने के दौरान इस्तेमाल होने वाले छोटे उपकरण को योनि के अंदर रखा जाता है (4)।

पेल्विक अल्ट्रासाउंड (Pelvic Ultrasound)

इसे ट्रांसएब्डॉमिनल (Transabdominal) अल्ट्रासाउंड भी कहते हैं। इस अल्ट्रासाउंड में पेल्विक यानी गर्भ के अंगों की जांच की जाती है। इस टेस्ट को करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले पेट पर एक जेल लगाते हैं, फिर उसी के ऊपर ट्रांसड्यूसर रखकर, पेट के अलग-अलग हिस्सों पर घुमाते हैं और गर्भाशय की जांच करते हैं (5)।

3डी अल्ट्रासाउंड (3D Ultrasound)

ऊपर बताए गए दोनों ही तरह के अल्ट्रासाउंड को एक तरह से 2डी अल्ट्रासाउंड माना जाता है। वहीं, 3डी अल्ट्रासाउंड इस दोनों ही प्रकार से काफी भिन्न हैं। 3डी अल्ट्रासाउंड में गर्भ में पल रहे भ्रूण की छवि को देखा जा सकता है। यह अल्ट्रासाउंड भ्रूण के शारीरिक अंगों की लंबाई, चौड़ाई और बनावट को दिखा सकता है (6)। डॉक्टर गर्भ में शिशु का विकास सामान्य है या नहीं, इसका पता 3डी अल्ट्रासाउंड की मदद से लगा सकते हैं।

4डी अल्ट्रासाउंड (4D Ultrasound)

3डी अल्ट्रासाउंड की ही तरह 4डी अल्ट्रासाउंड भी भ्रूण की शारीरिक विकृतियों को बता सकता है। इसका इस्तेमाल गर्भावस्था के पहले चरण से भी किया जा सकता है (7)। बस फर्क इतना है कि 3डी जहां चित्रों को पर्दशित करता है, वहीं 4डी में भ्रूण का गतिशील वीडियो बनता है। एक तरह से 4डी अल्ट्रासाउंड के जरिए गर्भ में भ्रूण की हलचल का वीडियो देखा जा सकता है (8)।

फेटल इकोकार्डियोग्राफी (Fetal Echocardiography)

यह भी एक तरह का अल्ट्रासाउंड है, जिसे अक्सर गर्भावस्था की दूसरी तिमाही यानी 18वें से 24वें सप्ताह के दौरान किया जाता है। यह परीक्षण गर्भ में शिशु के दिल का मूल्यांकन करता है। अगर भ्रूण को दिल से जुड़ी कोई समस्या है, तो इस परीक्षण के जरिए उसका पता गर्भ से ही लगाया जा सकता है (9)।

डॉपलर अल्ट्रासाउंड (Doppler Ultrasound)

इस तरह के इमेजिंग टेस्ट में रक्त वाहिकाओं का परीक्षण किया जाता है, जो गर्भवती व उसके अजन्मे बच्चे में सामान्य रक्त प्रवाह की जांच करता है। इसके कई अन्य प्रकार भी हैं, जिनका इस्तेमाल रक्त वाहिकाओं से जुड़े विभिन्न परिक्षणों को लिए किया जाता है। खासतौर पर यह परीक्षण खराब हुए, कम हो रहे या बंद हो गई खून की नसों की जांच करता है। इसके अलावा, इसका इस्तेमाल हृदय रोगों का निदान करने के लिए भी होता है (10)।

प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड क्यों कराना चाहिए, यह भी पढ़ें।
गर्भावस्था में सोनोग्राफी क्यों जरूरी है?

गर्भावस्था के किसी भी चरण में सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है। खासकर, गर्भावस्था के 18वें से 20वें सप्ताह के बीच। इस दौरान गर्भ में भ्रूण का काफी हद तक विकास हो जाता है, जिससे अल्ट्रासाउंड के जरिए शिशु के लिंग, उसकी शारीरिक बनावट व विकास को समझा जा सकता है (11)। आगे गर्भावस्था में प्रत्येक चरणों के अनुसार अल्ट्रासाउंड क्यों जरूरी है, यह नीचे बताया गया है (12)।
1. गर्भावस्था की पहली तिमाही (पहले सप्ताह से 12वें सप्ताह का समय)

गर्भ के अंदर भ्रूण की स्थिति का पता लगाने के लिए।

भ्रूण फैलोपियन ट्यूब के अंदर है या नहीं, इसकी पुष्टि करने के लिए।

भ्रूण की संख्या यानी सिंगल, ट्वीन्स या उससे अधिक भ्रूण की प्रेगनेंसी का पता करने के लिए।

गर्भ में भ्रूण की आयु की गणना करने के लिए।

बायोफिजिकल प्रोफाइल (Biophysical Profile) यानी गर्भ में भ्रूण के स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य स्थितियों का पता लगाने के लिए (11)।

2. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही (12वें – 24वें सप्ताह का समय)

इस दौरान खासतौर पर 18वें से 20वें सप्ताह के बीच अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है।

यह भ्रूण की शारीरिक संरचनाओं जैसे कि रीढ़, मस्तिष्क और आंतरिक अंगों व अन्य अंगों के विकास की जांच करता है।

मां के प्लेसेंटा का आकार और स्थान की भी जांच करता है।

भ्रूण के लिंग की जानकारी मिलती है।

3. गर्भावस्था की तीसरी तिमाही (24वें – 40वें सप्ताह का समय)

तीसरी तीमाही में खासतौर पर 30 वें सप्ताह के बाद अल्ट्रासाउंड किया जाता है।

गर्भ में बच्चा सामान्य दर से बढ़ रहा है या नहीं, इसका पता लगता है।

प्लेसेंटा के स्थान की जांच करने के लिए।

गर्भाशय ग्रीवा में किसी तरह का अवरोध नहीं है, इसकी पुष्टि होती है।

आगे हम गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करवाने के फायदे भी बता रहे हैं।
गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करवाने के फायदे

प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड करवाने के फायदे कई हैं, जिनके बारे में आप नीचे पढ़ेंगे।

भ्रूण के स्वास्थ्य का पता लगाना – अल्ट्रासाउंड के जरिए गर्भावस्था के दौरान बच्चे के विकास की जांच की जा सकती है। इसके परिणामों से बच्चे में डाउन सिंड्रोम जैसी किसी भी असामान्यता का पता लगाया जा सकता है (12)।

भ्रूण के शारीरिक विकास की निगरानी रखना – गर्भ में शिशु का शारीरिक विकास सामान्य है या नहीं, इस पर नजर रखने के लिए गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड कराना फायदेमंद है (12)।

भ्रूण का स्थान – भ्रूण मां के गर्भ में ही पल रहा है या नहीं, इसका भी पता अल्ट्रासाउंड के जरिए लगाया जा सकता है (12)। अगर भ्रूण मां के गर्भ से बाहर या फैलोपियन ट्यूब में विकसित होता है, तो मेडिकल टर्म में उसे एक्टोपिक प्रेगनेंसी (Ectopic Pregnancy) कहते हैं (13)।

गर्भाशय व प्लेसेंटा की निगरानी करना – गर्भवती महिला के गर्भाशय व प्लेसेंटा के स्वास्थ्य की निगरानी करने के लिए भी अल्ट्रासाउंड करना महत्वपूर्ण माना जाता है (12)।

दर्द रहिव व सुरक्षित तकनीक – इतना ही नहीं, अल्ट्रासाउंड के दौरान गर्भवती महिला या गर्भ में पल रहे शिशु को किसी तरह के दर्द का अनुभव नहीं होता। इस दौरान महिला को किसी तरह के इंजेक्शन, रेडिएशन या चीरा लगाने की जरूरत भी नहीं (12)।

दिल का स्वास्थ्य समझना – गर्भावस्था के दौरान मां के साथ ही भ्रूण के दिल की धड़कन को देखने और सुनने के लिए इस्तेमाल किया जाता है (8)।

अजन्मे बच्चे की छवि देखना – 3डी व 4डी अल्ट्रासाउंड के जरिए माता-पिता गर्भ में पल रहे अपने अजन्मे बच्चे की शारीरिक छवि व रूप के साथ ही उसकी हलचलों को भी देख सकते हैं (8)।

तत्काल परिणाम जानना – अन्य तरह के परीक्षण की तरह अल्ट्रासाउंड के परिणाम जानने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता। अल्ट्रासाउंड के परिणाम तुरंत देखे जाते हैं (14)।

गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड के नुकसान हैं या नहीं, जानने के लिए स्क्रॉल करें।
गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड के नुकसान

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इफॉर्मेशन) इसकी पुष्टि करता है कि गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करना सुरक्षित व काफी हद तक सटीक परिणाम देने वाला टेस्ट है। गर्भावस्था के दौरान इस तकनीक का इस्तेमाल भी अधिक किया जाता है (15)। हालांकि, अल्ट्रासाउंड के परिणामों पर पूरी तरह से निर्भर नहीं हो सकते हैं, जिस वजह से गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड के नुकसान भी हो सकते हैं, जैसे:

अगर गर्भ में भ्रूण से जुड़ी किसी तरह की असामान्यता का पता चलाता है, तो इसकी पुष्टि करने के लिए अन्य परीक्षणों को करना जरूरी है। इसके लिए एमनियोसेंटेसिस और कोरियोनिक विलस सैंपलिंग जैसे कुछ आनुवांशिक टेस्ट किए जा सकते हैं (12)।

कुछ मामलों में भ्रूण से जुड़े अल्ट्रासाउंड के परिणाम गलत हो सकते हैं 14।

अल्ट्रासाउंड के दौरान गर्भवती के पेट पर एक तरह का जेलनुमा पदार्थ लगाया जाता है। अगर यह महिला के त्वचा के अंदर प्रेवश कर जाए, तो नुकसान भी हो सकते हैं (14)। हालांकि, इस विषय में उचित शोध की आवश्यकता है।

ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड के कारण गर्भवती महिला में चिंता, दर्द या योनि से रक्तस्राव जैसी समस्या हो सकती है (15)।

प्रेगनेंसी में सोनोग्राफी कब व कितनी बार कराएं, यह भी आगे जान लें।
प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड कब और कितनी बार करवाना चाहिए? | Pregnancy me sonography kab karna chahiye

वैसे तो प्रेगनेंसी में किसी भी समय अल्ट्रासाउंड कराना सुरक्षिता है (11)। हालांकि, भारत सरकार की तरफ से अल्ट्रासोनोग्राफी के उपयोग पर जारी गाइडलाइन में यह बताया गया है कि यूरोप या कनाडा जैसे अन्य देशों की तरह भारत में गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड कराने के लिए कोई जरूरी दिशानिर्देश जारी नहीं हैं। वर्तमान में भारत में अल्ट्रासाउंड कब और कितनी बार करानी चाहिए, इसके लिए कोई निर्धारित मानक नहीं हैं (1)।

वहीं, अन्य देशों के स्वास्थ्य विशेशज्ञों के अनुसार, गर्भावस्था के 8-14वें सप्ताह पर पहला अल्ट्रासाउंड और 18-20वें सप्ताह में दूसरा अल्ट्रासाउंड जरूर कराना चाहिए। इससे भ्रूण की असामान्यताओं का पता लगाया जा सकता है (1)।

अब समझिए कि गर्भावस्था में सोनोग्राफी के दौरान क्या होता है।
अल्ट्रासाउंड के दौरान क्या होता है?

प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड की प्रक्रिया अलग-अलग होती है। यह अल्ट्रासाउंड के प्रकार पर निर्भर करती है, जैसे (12):

पेट वाला अल्ट्रासाउंड – पेट के जरिए किए जाने वाले अल्ट्रासाउंड के लिए सबसे पहले डॉक्टर गर्भवती को पानी पीने के लिए कहते हैं। फिर महिला को पीठ के बल लिटाया जाता है। इसके बाद डॉक्टर गर्भवती के पेट पर पारदर्शी जेलनुमा क्रीम लगाते हैं। फिर उसी के ऊपर से वो सोनोग्राफर स्कैनर को विभिन्न स्थितियों में घुमाते हैं। इससे पेट के अंदर की तस्वीरें एक मॉनिटर को ट्रांसफर होती रहती है, जो गर्भ के अंदर की स्थितियों की जानकारी देती है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट का समय लग सकता है।

योनि अल्ट्रासाउंड – अगर पेट के जरिए किए गए अल्ट्रासाउंड से सटीक परिणाम नहीं मिलते हैं, तो गर्भवती ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड करा सकती है। इसके लिए डॉक्टर योनि के मार्ग से अल्ट्रासाउंड करते हैं। इसके लिए सबसे पहले गर्भवती को एक गाउन पहनाकर पीठ के बल पर लेटाया जाता है। फिर एक पतला अल्ट्रासाउंड स्कैनर योनि के अंदर रखा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट का समय लग सकता है।

अल्ट्रासाउंड के लिए गर्भवतियों को किस तरह की तैयार करनी चाहिए, जानने के लिए इस भाग को पढ़ें।
गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड के लिए खुद को कैसे तैयार करें?

अल्ट्रासाउंड के लिए गर्भवती को किस तरह की तैयारी करनी चाहिए, यह अल्ट्रासाउंड के प्रकार पर निर्भर करता है। अगर पेट के जरिए अल्ट्रासाउंड हो रहा है, तो गर्भवती को अपने मूत्राशय को भरना होगा। इसके लिए अल्ट्रासाउंड कराने से लगभग 1 घंटे पहले 2 से 3 गिलास पानी पीने की सलाह दी जाती है। इस दौरान जब तक अल्ट्रासाउंड नहीं हो जाता, गर्भवती को तबतक बाथरूम भी नहीं जाना चाहिए। साथ ही इस दौरान आरामदायक और ढीले कपड़े ही पहनें (2)।

योनि के व अन्य तरह के अल्ट्रासाउंड के लिए, गर्भवती को परीक्षण से कुछ घंटे पहले से ही कुछ भी खाने-पीने से मना कर दिया जाता है। इसके बारे में डॉक्टर गर्भवती को सारी जानकारी पहले ही दे देते हैं (2)।

लेख के अंत में यह भी बताया गया है कि बार-बार अल्ट्रासाउंड कराने का शिशु पर कैसे प्रभाव होता है।
क्या अल्ट्रासाउंड बार-बार करने से गर्भ में पल रहे शिशु के विकास पर किसी तरह का असर होता है?

गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करवाना जच्चे-बच्चे के लिए पूरी तरह से सुरक्षित माना गया है। इसके इस्तेमाल से मां या शिशु के स्वास्थ्य पर किसी तरह का नकारात्मक परिणाम नहीं देखा जाता है (12)। अगर गर्भावस्था में बार-बार अल्ट्रासाउंड कराया जाए, तो इसका गर्भ में पल रहे शिशु के विकास पर कैसा प्रभाव होगा, इस विषय पर शोध की कमी है। ऐसे में बेहतर होगा कि इस बारे में डॉक्टर की सलाह लें।

प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड जहां सुरक्षित है, वहीं कई मायनों में यह आवश्यक भी माना गया है। इस लेख में हमने गर्भावस्था में सोनोग्राफी कब व कितनी बार कराएं, इससे जुड़ी अहम जानकारी के साथ ही, इसके फायदे व नुकसान भी बताए हैं। बस ध्यान रखें कि गर्भावस्था में सोनोग्राफी हमेशा भरोसेमंद क्लीनिक व अनुभवी डॉक्टर की देखरेख में ही कराएं।

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wordpress 1 year ago 5 Answer
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