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नवजात को सांस लेने में हो रही परेशानी तो सीपीएपी मशीन आएगी काम जिन बच्चों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, उनके इलाज के लिए सीपीएपी मशीन का प्रयोग किया जाता है नवजात को सांस लेने में हो रही परेशानी तो सीपीएपी मशीन आएगी कामप्रतीकात्मक तस्वीर साभार: इंटरनेट लखनऊ। नवजात शिशुओं और प्री म्योचोर बेबी में सांस लेने में परेशानी के मामले अक्सर देखने में आते हैं, लेकिन सीपीएपी (लगातार सकारात्मक वायुमार्ग दबाव मशीन) से नवजात को सांस देने की तकनीक काफी कारगर साबित हो रही है। यह नॉन इन्वेसिव होने के कारण जहां यह वेंटीलेटर की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित है वहीं इसमें खर्च भी कम आता है। ये भी पढ़ें: वाराणसी में सांस की बीमारी और एलर्जी के मरीजों की संख्या में इजाफा संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय निरंजन ने बताया, " कई बार देखने में आता है कि किन्हीं कारणों से नवजात को सांस लेने में दिक्कत होती है। इस स्थिति में नियोनैटल इन्टेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में भर्ती कर उसे तुरंत वेंटीलेटर की आवश्यक्ता पड़ती है, जिसमें ट्रैकिया में ट्यूब डालकर सांस दी जाती है। लेकिन सीपैप मशीन से बिना किसी ट्यूब को अंदर डाले नाक की सहायता से ही हल्के प्रेशर से ऑक्सीजन या हवा दी जाती है। हल्के प्रेशर से लगातार दबाव बनाने से यह होता है कि फेफड़े एक बार फूलने के बाद वापस पिचकते नहीं हैं, जिससे सांस लेना आसान हो जाता है।" सीपीएपी मशीन का प्रयोग नवजात शिशुओं के इलाज के लिए काफी उपयोगी है। जिन बच्चों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, उनके इलाज के लिए सीपीएपी मशीन का प्रयोग किया जाता है। इस मशीन से धीरे-धीरे बच्चे के नाक में हवा जाती है, जो उसके फेफड़े को बढ़ने में मदद करती है। ये भी पढ़ें: धूम्रपान नहीं करने वाली ग्रामीण महिलाएं तेजी से हो रही सांस की बीमारी का शिकार " सीपीएपी मशीन से सांस देने की एक खासियत यह भी है कि इसे शिशु के जन्म के तुरंत बाद भी प्रसव कक्ष में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस सीपैप विधि से सांस देने में आमतौर पर वेंटीलेटर की जरूरत नहीं पड़ती है और अगर पड़ती भी है तो बहुत कम समय के लिए पड़ती है। इसकी लागत वेंटीलेटर के मुकाबले सिर्फ 10 से 20 फीसदी है। " डॉक्टर निरंजन ने आगे बताया। वहीं खर्राटों लेने की समस्या में भी सीपीएपी मशीन काफी कारगर है। इससे खर्राटों की समस्या दूर हो सकती है और मरीज की उनींदी में भी सुधार आ सकता है। लेकिन ऐसा तभी संभव है जब इसका नियमित इस्तेमाल किया जाए।
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