बिना दर्द के नार्मल डिलीवरी?pregnancytips.in

Posted on Sun 8th Dec 2019 : 18:42

बिना दर्द के डिलीवरी करवाने के साइड इफेक्ट्स

शायद इस दुनिया में लेबर पेन से ज्‍यादा दर्दनाक और कुछ नहीं होगा। कहते हैं कि एक बच्‍चे को जन्‍म देने में जितना दर्द होता है, उतना किसी और चीज में नहीं होता है। प्रसव पीड़ा के दर्द को कम करने के लिए कई विकल्‍प मौजूद हैं जिनमें एपिड्यूरल और स्‍पाइनल ब्‍लॉक शामिल है।

epidural pregnancy meaning
भारत में डिलीवरी के दर्द को कम करने के इन तरीकों का कम इस्‍तेमाल होता है, लेकिन फिर भी आपके लिए यह जानना जरूरी है कि ऐसा कोई विकल्‍प मौजूद है।
विदेशों में लेबर पेन को कम करने के लिए इस तरीके का सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल किया जाता है। इसमें दर्द निवारक और संवेदनात्‍मक गुण होते हैं। एपिड्यूरल एक टयूब जैसा उपकरण है जिसे पीठ में लगाया जाता है। दर्द के संकेतों को मस्तिष्‍क तक पहुंचने से दवा रोक देती है। इंजेक्‍शन लगने के बाद महिला को पेट के नीचे ज्‍यादा कुछ महसूस नहीं होता है और वो होश में रहते हुए भी पुश कर पाती है।

नॉर्मल और सिजेरियन के अलावा और भी कई तरीकों से हो सकती है डिलीवरी

-

यह प्रसव का सबसे आम तरीका है और इस तरह की डिलीवरी को सबसे सुरक्षित और फायदेमंद माना जाता है। इसमें दर्द को कम करने या प्रसव को जल्‍दी करने के लिए किसी भी तरह की दवा का उपयोग नहीं किया जाता है। कुछ महिलाओं को शिशु की हार्ट रेट मॉनिटर करने जैसी मेडिकल हेल्‍प की जरूरत पड़ सकती है।

नॉर्मल डिलीवरी को महिलाओं के लिए सबसे सही माना जाता है, क्‍योंकि इसके बाद रिकवर करने में कम समय लगता है।
-

यदि प्रेगनेंसी में कोई परेशानी हो तो सिजेरियन डिलीवरी करवाई जाती है। इस प्रक्रिया में मां के पेट पर कट लगाकर बच्‍चे को बाहर निकाला जाता है। यह एक बड़ा ऑपरेशन होता है। कई महिलाएं प्रसव पीड़ा से बचने के लिए सिजेरियन का विकल्‍प पहले से ही चुन लेती हैं।
वहीं, अगर प्रेगनेंसी के दौरान किसी तरह की जटिलता का पता चले या पेट में जुड़वां या तीन बच्‍चे हों या बच्‍चा उल्‍टा हो गया हो तो इस स्थिति में सिजेरियन ऑपरेशन करना पड़ता है। इस सर्जरी के बाद प्रेगनेंट महिला को रिकवर करने में अधिक समय लगता है।
-

इसमें कई तरह से डिलीवरी करवाई जाती है, जैसे कि :
फोरसेप्‍स : बड़े चम्‍मच जैसा दिखने वाला उपकरण जिसे फोरसेप्‍स कहते हैं। डॉक्‍टर इससे शिशु के सिर को पकड़ कर बर्थ कैनाल से बाहर निकालते हैं।वैक्‍यूम एक्‍सट्रैक्‍शन : फोरसेप्‍स की तरह ही वैक्‍यूम डिलीवरी होती है। इसमें डॉक्‍टर शिशु के सिर पर प्‍लास्टिक कप लगाकर बर्थ कैनाल से बाहर खींचते हैं।एपिसिओटोमी : इसमें योनि मुख और गुदा के बीच के ऊतक पर एक कट लगाया जाता है। इस ऊतक को पेरिनियम कहते हैं। जब शिशु को जल्‍दी से डिलीवर करवाना होता है, तभी इस तरह की डिलीवरी करवाई जाती है।एमनिओटोमी : इसमें डॉक्‍टर एमनिओटिक थैली के खुलने वाली जगह पर एक छोटा प्‍लास्टिक हुक लगाते हैं। इसमें योनि से तेजी से पानी निकलता है।
हो सकता है कि जिन महिलाओं की पहले सिजेरियन डिलीवरी हुई हो, उनकी बाद में नॉर्मल डिलीवरी हो। जब तक लेबर पेन शुरू नहीं होता, तब तक सिजेरियन ऑपरेशन नहीं किया जाता है। पहली बार में ऑपरेशन से डिलीवरी होने पर दूसरी बार नॉर्मल डिलीवरी हो तो यूट्राइन रप्‍चर का खतरा रहता है।

इस तरह कई प्रकार की डिलीवरी होती हैं और प्रेगनेंट महिला की स्थिति के आधार पर ही डॉक्‍टर यह तय करते हैं कि प्रेगनेंट महिला की किस तरह की डिलीवरी करनी है।
स्‍पाइनल ब्‍लॉक पेट के नीचे के हिस्‍से को सुन्‍न कर देता है लेकिन इसमें दवा रीढ़ की हड्डी के आसपास फ्लूइड के रूप में एक शॉट दिया जाता है। ये जल्‍दी असर करता है लेकिन इसका प्रभाव सिर्फ एक या दो घंटे के लिए रहता है।
इसके अलावा स्‍पाइनल और एपिड्यूरल ब्‍लॉक को एक साथ भी लिया जा सकता है। इसमें दोनों प्रकार के एनेस्थीसिया का फायदा मिलता है। ये जल्‍दी काम करता है और इसमें अधिक समय तक दर्द महसूस नहीं होता है।
भले ही इस तरह लेबर पेन कम हो जाता हो, लेकिन इसके कुछ साइड इफेक्‍ट भी होते हैं।

खुजली और मतली
एपिड्यूरल में इस्‍तेमाल होने वाली कुछ दवाओं की वजह से खुजली हो सकती है। डॉक्‍टर खुजली से राहत पाने के लिए दवा दे सकते हैं। ओपोइड दर्द निवारक दवाओं के कारण कभी-कभी पेट खराब हो सकता है और आपको मतली या उल्‍टी हो सकती है।
नॉर्मल और सिजेरियन के अलावा और भी कई तरीकों से हो सकती है डिलीवरी

-

यह प्रसव का सबसे आम तरीका है और इस तरह की डिलीवरी को सबसे सुरक्षित और फायदेमंद माना जाता है। इसमें दर्द को कम करने या प्रसव को जल्‍दी करने के लिए किसी भी तरह की दवा का उपयोग नहीं किया जाता है। कुछ महिलाओं को शिशु की हार्ट रेट मॉनिटर करने जैसी मेडिकल हेल्‍प की जरूरत पड़ सकती है।

नॉर्मल डिलीवरी को महिलाओं के लिए सबसे सही माना जाता है, क्‍योंकि इसके बाद रिकवर करने में कम समय लगता है।
यदि प्रेगनेंसी में कोई परेशानी हो तो सिजेरियन डिलीवरी करवाई जाती है। इस प्रक्रिया में मां के पेट पर कट लगाकर बच्‍चे को बाहर निकाला जाता है। यह एक बड़ा ऑपरेशन होता है। कई महिलाएं प्रसव पीड़ा से बचने के लिए सिजेरियन का विकल्‍प पहले से ही चुन लेती हैं।


वहीं, अगर प्रेगनेंसी के दौरान किसी तरह की जटिलता का पता चले या पेट में जुड़वां या तीन बच्‍चे हों या बच्‍चा उल्‍टा हो गया हो तो इस स्थिति में सिजेरियन ऑपरेशन करना पड़ता है। इस सर्जरी के बाद प्रेगनेंट महिला को रिकवर करने में अधिक समय लगता है।
-

इसमें कई तरह से डिलीवरी करवाई जाती है, जैसे कि :
फोरसेप्‍स : बड़े चम्‍मच जैसा दिखने वाला उपकरण जिसे फोरसेप्‍स कहते हैं। डॉक्‍टर इससे शिशु के सिर को पकड़ कर बर्थ कैनाल से बाहर निकालते हैं।वैक्‍यूम एक्‍सट्रैक्‍शन : फोरसेप्‍स की तरह ही वैक्‍यूम डिलीवरी होती है। इसमें डॉक्‍टर शिशु के सिर पर प्‍लास्टिक कप लगाकर बर्थ कैनाल से बाहर खींचते हैं।एपिसिओटोमी : इसमें योनि मुख और गुदा के बीच के ऊतक पर एक कट लगाया जाता है। इस ऊतक को पेरिनियम कहते हैं। जब शिशु को जल्‍दी से डिलीवर करवाना होता है, तभी इस तरह की डिलीवरी करवाई जाती है।एमनिओटोमी : इसमें डॉक्‍टर एमनिओटिक थैली के खुलने वाली जगह पर एक छोटा प्‍लास्टिक हुक लगाते हैं। इसमें योनि से तेजी से पानी निकलता है।
हो सकता है कि जिन महिलाओं की पहले सिजेरियन डिलीवरी हुई हो, उनकी बाद में नॉर्मल डिलीवरी हो। जब तक लेबर पेन शुरू नहीं होता, तब तक सिजेरियन ऑपरेशन नहीं किया जाता है। पहली बार में ऑपरेशन से डिलीवरी होने पर दूसरी बार नॉर्मल डिलीवरी हो तो यूट्राइन रप्‍चर का खतरा रहता है।

इस तरह कई प्रकार की डिलीवरी होती हैं और प्रेगनेंट महिला की स्थिति के आधार पर ही डॉक्‍टर यह तय करते हैं कि प्रेगनेंट महिला की किस तरह की डिलीवरी करनी है।
लो ब्‍लड प्रेशर
एपिड्यूरल ब्‍लॉक लेने वाली लगभग 14 फीसदी महिलाओं के ब्‍लड प्रेशर के लेवल में गिरावट आई। एपिड्यूरल ब्‍लॉक रक्‍त वाहिकाओं के अंदर मांसपेशियों के संकुचन को नियंत्रित करने वाले नसों के फाइबर को प्रभावित करता है। इससे रक्‍त वाहिकाएं रिलैक्‍स हो जाती हैं और ब्‍लड प्रेशर नीचे आ जाता है।
पेशाब करने में दिक्‍कत
एपिड्यूरल के बाद मूत्राशय को भरने वाली नसें सुन्‍न हो जाती हैं। मूत्राशय को खाली करने के लिए कैथेटर लगवाना पड़ सकता है। एपिड्यूरल हटाने के बाद स्थिति पहले की तरह ही हो जाती है।
इसके कुछ दुर्लभ दुष्‍प्रभाव भी हैं, जिनके बारे में नीचे बताया गया है।

सांस लेने में दिक्‍कत और तेज सिरदर्द
कुछ दुर्लभ मामलों में एनेस्थीसिया सांस लेने में मदद करने वाली छाती की मांसपेशियों को प्रभावित कर सकती है। इससे सांस लेने में दिक्‍कत होती है।
अगर गलती से एपिड्यूरल सुई रीढ़ की हड्डी को ढकने वाली झिल्‍ली को नुकसान पहुंचा दे और फ्लूइड निकलने लगे तो इसकी वजह से तेज सिरदर्द हो सकता है। हालांकि, ऐसा बहुत कम होता है।
नॉर्मल और सिजेरियन के अलावा और भी कई तरीकों से हो सकती है डिलीवरी



यह प्रसव का सबसे आम तरीका है और इस तरह की डिलीवरी को सबसे सुरक्षित और फायदेमंद माना जाता है। इसमें दर्द को कम करने या प्रसव को जल्‍दी करने के लिए किसी भी तरह की दवा का उपयोग नहीं किया जाता है। कुछ महिलाओं को शिशु की हार्ट रेट मॉनिटर करने जैसी मेडिकल हेल्‍प की जरूरत पड़ सकती है।

नॉर्मल डिलीवरी को महिलाओं के लिए सबसे सही माना जाता है, क्‍योंकि इसके बाद रिकवर करने में कम समय लगता है।


यदि प्रेगनेंसी में कोई परेशानी हो तो सिजेरियन डिलीवरी करवाई जाती है। इस प्रक्रिया में मां के पेट पर कट लगाकर बच्‍चे को बाहर निकाला जाता है। यह एक बड़ा ऑपरेशन होता है। कई महिलाएं प्रसव पीड़ा से बचने के लिए सिजेरियन का विकल्‍प पहले से ही चुन लेती हैं।


वहीं, अगर प्रेगनेंसी के दौरान किसी तरह की जटिलता का पता चले या पेट में जुड़वां या तीन बच्‍चे हों या बच्‍चा उल्‍टा हो गया हो तो इस स्थिति में सिजेरियन ऑपरेशन करना पड़ता है। इस सर्जरी के बाद प्रेगनेंट महिला को रिकवर करने में अधिक समय लगता है।
-

इसमें कई तरह से डिलीवरी करवाई जाती है, जैसे कि :
फोरसेप्‍स : बड़े चम्‍मच जैसा दिखने वाला उपकरण जिसे फोरसेप्‍स कहते हैं। डॉक्‍टर इससे शिशु के सिर को पकड़ कर बर्थ कैनाल से बाहर निकालते हैं।वैक्‍यूम एक्‍सट्रैक्‍शन : फोरसेप्‍स की तरह ही वैक्‍यूम डिलीवरी होती है। इसमें डॉक्‍टर शिशु के सिर पर प्‍लास्टिक कप लगाकर बर्थ कैनाल से बाहर खींचते हैं।एपिसिओटोमी : इसमें योनि मुख और गुदा के बीच के ऊतक पर एक कट लगाया जाता है। इस ऊतक को पेरिनियम कहते हैं। जब शिशु को जल्‍दी से डिलीवर करवाना होता है, तभी इस तरह की डिलीवरी करवाई जाती है।एमनिओटोमी : इसमें डॉक्‍टर एमनिओटिक थैली के खुलने वाली जगह पर एक छोटा प्‍लास्टिक हुक लगाते हैं। इसमें योनि से तेजी से पानी निकलता है।



हो सकता है कि जिन महिलाओं की पहले सिजेरियन डिलीवरी हुई हो, उनकी बाद में नॉर्मल डिलीवरी हो। जब तक लेबर पेन शुरू नहीं होता, तब तक सिजेरियन ऑपरेशन नहीं किया जाता है। पहली बार में ऑपरेशन से डिलीवरी होने पर दूसरी बार नॉर्मल डिलीवरी हो तो यूट्राइन रप्‍चर का खतरा रहता है।

इस तरह कई प्रकार की डिलीवरी होती हैं और प्रेगनेंट महिला की स्थिति के आधार पर ही डॉक्‍टर यह तय करते हैं कि प्रेगनेंट महिला की किस तरह की डिलीवरी करनी है।


नसों को नुकसान
अगर दवा नसों में चली जाए तो कुछ मामलों में एपिड्यूरल की वजह से दौरे भी पड़ सकते हैं। एपिड्यूरल के लिए इस्‍तेमाल होने वाली सुई नस को नुकसान पहुंचा दे तो शरीर के निचले हिस्‍से को महसूस करने की शक्‍ति कुछ समय या हमेशा के लिए खो सकती है।

फिलहाल भारत में लेबर पेन को कम करने के इन तरीकों का अधिक इस्‍तेमाल नहीं किया जाता है, लेकिन फिर भी आप डॉक्‍टर से इसके बारे में सलाह जरूर ले सकती हैं।

solved 5
wordpress 4 years ago 5 Answer
--------------------------- ---------------------------
+22

Author -> Poster Name

Short info