बच्चे कितने दिन में बोलने लगते हैं?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:30

शिशु कब बोलना शुरू करते है व सीखाने के टिप्स
जन्म के बाद से ही शिशु के विकास का चरण शुरू हो जाता है। वह धीरे-धीरे खुद से क्रॉल करने से लेकर, बैठना, चलना, ताली बजाना और बोलना सीखने लगता है। बच्चे के विकासात्मक का यह तरण हर पेरेंट्स के लिए काफी आनंद भरा भी होता है। यही वजह है कि इस लेख में हम खासतौर पर शिशु के बोलने से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं। कितने माह में आपका शिशु बोलना शुरू करता है, इससे जानने के लिए यह लख पढ़ें।

आमतौर पर शिशु किस उम्र में बोलना शुरू करते हैं।
शिशु किस उम्र में बोलना शुरू करते है?

आमतौर पर बच्चे 4 महीने की उम्र में तुतला कर बोलना शुरू कर देते हैं। आमातौर पर वे अपने आस-पास सुनाई देनी वाली आवाजों की नकल कर सकते हैं और इस दौरान वे इसे अपनी तोतली भाषा में बोलने का प्रयास भी करते हैं (1)। वहीं, विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चे में गर्भ से ही भाषा का संचार होने लगता है, इसलिए मां को गर्भावस्था के दौरान से ही शिशु से बात करनी चाहिए। ऐसा भी माना जाता है कि बच्चे को किसी शब्द को बोलना शुरू करने से पहले उसे कम से कम 100 बार सुनने की जरूरत होती है (2)।

जानना चाहते हैं कि बच्चे कब और कैसे बोलते हैं तो आगे पढ़ें।
छोटे बच्चे कब और कैसे बोलना सिखते है?

आम तौर पर छोटे बच्चे 12 से 18 महीने की उम्र के बीच अपना पहला शब्द बोलना शुरू कर देते हैं (3)। रिसर्च से यह पता चलता है कि बच्चों में जन्म से लेकर 5 वर्ष तक भाषा सीखने का गुण विकसित होता रहता है। यहां हम क्रमानुसार जानेंगे कि किस उम्र में बच्चे क्या बोलते हैं (2)।

जन्म का शुरुआती 3 महीना : इस उम्र में शिशु परिचित आवाज की ओर देखता है और तेज आवाज से डर जाता है। वह माता-पिता के साथ ही अपने आस-पास रहने वाले लोगों की आवाज भी पहचानने लगता है।

3 से 6 महीने : इस दौरान बच्चा सुनी हुई आवाज पर उत्साह दिखाता है। ध्यान आकर्षित करने के लिए आवाज निकालना, खेल के दौरान हंसना और बड़बड़ाना जैसी आदतों का विकास शुरू हो जाता है।

6 से 12 महीना : इस उम्र में बच्चा अलग-अलग आवाज, जैसे-फोन का रिंग, दरवाजे की घंटी जैसी आवाजें पहचानने लगता है। साथ ही बाबा, मामा, नो-नो, गो-गो जैसे सरल शब्दों का इस्तेमाल भी करना शुरू कर देता है।

12 से 15 महीने : इस उम्र के बच्चे अक्सर संगीत की तरफ अधिक ध्यान दे सकते हैं। सॉफ्ट म्युजिक व लोरी की तरफ उनका ध्यान अधिक आकर्षित हो सकता है।

15 से 18 महीने : इस उम्र में बच्चा छोटी-छोटी बातों के प्रति इशारों को आसानी से समधना शुरू कर सकता है। उदाहरण के लिए, पास आने, सोने, चुप होने, बैठने या जूते पहने जैसे निर्देशों को वह आसानी से समझ सकता है और उन्हें बोलने की नकल भी कर सकता है।

18 से 2 वर्ष : इस उम्र में बच्चे लगभग अधितकर निर्देशों को समझना शुरू कर देते हैं। वह 2 से 3 शब्दों को एक साथ बोलना भी शुरू कर सकता है।

2 से 3 साल : बच्चे इस उम्र में सुनने और बात करने का कौशल विकसित कर लेते हैं। चित्र के साथ कहानियों को समझने लगते हैं। इस दौरान 4 से 5 शब्दों को जोड़कर बोल सकते हैं। बच्चा बातचीत भी शुरू कर सकता है।

3 से 4 साल : इस दौरान बच्चा 6 शब्दों के वाक्य का उपयोग भी कर सकता है।

4 से 5 : इस उम्र तक के बच्चे आसानी से अपने घर में बोली जानी वाली भाषा का उपयोग करना सीख चुके होते हैं। साथ ही उन्हें किसी अन्य भाषा की ट्रेनिंग देना भी इस उम्र से शुरू किया जा सकता है।

छोटे बच्चे को बात करना कैसे सिखाएं, आगे जानते हैं।
छोटे बच्चे को बात करना कैसे सिखाएं? | Bache ko bolna kaise sikhaye

छोटे बच्चे को बात करना सिखाने के कई तरीके हैं। अगर उन तरीकों का सही से इस्तेमाल किया जाए, तो बच्चा आसानी से साफ-साफ बोलना शुरू कर सकता है। यहां पर हम ऐसे ही कुछ टिप्स दे रहे हैं, तो आपके बच्चे को बोलना सिखाने में मदद करेंगे।

बच्चे से इशारों में बात करना – पेरेंट्स अपने शिशु से इशारों में बात करना शुरू कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर पेरेंट्स चाहते हैं कि बच्चा खुद से भूख को बता सके, तो इसके लिए उसे दूख पिलाते समय या भोजन कराते समय उसे बताएं कि क्या वह इसी को मांग रहा है। इससे बच्चा यह समझ सकता है कि भूख लगने पर उसे किसी तरफ इशारा करना या उसे किस तरह के शब्दों का प्रयोग करना है।

लोरी सुनाना – बच्चे को सुलाते समय उसे लोरी सुना सकती हैं। लोरी सुनने से बच्चा आसानी से भाषा सीखने के लिए प्रेरित हो सकता है। अगर वह बार-बार एक ही लोरी सुनेगा, तो वह भी उसे बोलने की नकल शुरू कर सकता है, इससे वह जल्द ही बोलना शुरू कर सकता है।

कहानी सुनाना – पेरेंट्स बच्चों के कहानी सुनाने के जरिए भी बोलना सिखा सकते हैं। इसके लिए वे बच्चे को चित्रों के जरिए कोई कहानी सुना सकते हैं और उसी कहानी को दिन में 2 से 3 बार रिपीट भी कर सकते हैं।

बच्चे को प्रोत्साहित करना – शिशु के साथ खेलते हुए जब भी किसी भाषा का प्रयोग करें, तो उसे तीन से चार बार दोहराएं। ऐसा करने से बच्चे को वह शब्द बोलने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है।

बच्चे को बता कर कार्य करें – उदाहरण के लिए अगर बच्चे को नहला रही हैं, या उसे भोजन करा रही हैं, तो उसे इस बारे में बताएं। ऐसा करने से बच्चा नई-नई बातों के बारे में सीखेगा और उनके बारे में जानेगा।

बच्चे की नकल करें – अगर बच्चा अपनी तोतली आवाज में कुछ बोलता है, तो पेरेंट्स भी उसरी नकल कर सकते हैं। इससे बच्चे को खुशी मिलेगी और वह फिर से उसी आवाज को दोहराने की कोशिश कर सकता है।

जब शिशु बोलना सीख रहा है, उस समय इन बातों का ख्याल रखना चाहिए।
शिशु को बोलना सिखाते वक्त ध्यान रखने योग्य बातें

एक बात का ध्यान रखें कि हर बच्चे का विकासात्मक चरण एक-दूसरे बच्चे के अलग हो सकता है। जहां कुछ बच्चे छोटी उम्र में ही बोलना शुरू कर देते हैं, वहीं कुछ बच्चों को बोलना शुरू करने में थोड़ा समय भी लग सकता है (1)। इसलिए, जरूरी है कि शिशु को बोलना सिखाते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाए, जैसेः

ऊंचे स्वर में बोलें – बच्चे के सामने थोड़ा ऊंचे स्वर में बात करें। दरअसल, धीमी आवाज सुनने में बच्चे को परेशानी हो सकती है। इसलिए सामान्य से थोड़ी तेज आवाज में ही बच्चे से बात करें। इस दौरान किसी भी शब्द को बोलने की वाल्यूम को अधिक जरूर रखें।

शब्दों को तोड़कर बात करें – बच्चे से बात करते हुए शब्दों के बोलने की स्पीड कम रखें। यानि किसी भी शब्द को तोड़कर उसे धीमी स्पीड में पूरा करें। उदाहरण के लिए – क-आ-ह-आ-न-ई, प-आ-न-ई।

बातों को दहराएं – बच्चे के सामने एक ही बात और शब्द को कई बार दोहराएं। ऐसा करने से बच्चा आसानी से उस शब्द की नकल करना सीख सकता है और उसे बोलना शुरू कर सकता है।

चिल्लाएं नहीं – बच्चे से बात करते हुए या उसके सामने कभी भी चिल्ला कर कोई बात न कहें। ऐसा करने से बच्चा डर सकता है।

तुतलाएं नहीं – अक्सर माता-पिता बच्चे से तोतली भाषा में बात करते हैं, लेकिन ऐसा न करें। तोतली भाषा का प्रोयग शुरू की उम्र तक ही करें। जब बच्चा एक-दो शब्द बोलना सीख जाए, तो उसके सामने तोतली भाषा में बात न करें। ऐसा करने से बच्चा भी तोतली भाषा के प्रति ही प्रोत्साहित हो सकता है।

बच्चा देर से बात करना शुरू करता है तो क्या करें, जानने के लिए आगे पढ़ें।
क्या होगा अगर आपका बच्चा बात करना शुरू नहीं कर रहा है?

बच्चा अगर देर से बात करना शुरू करता है. तो पेरेंट्स परेशान हो जाते हैं। कई बार इसे सामान्य भी माना जा सकता है, हालांकि, कुछ स्थितियों में यह गंभीर भी हो सकता है (4)।

बहरापन : बच्चा अगर देर से बात करना शुरू करता है तो इससे सुनने की शक्ति की कमी देखी जाती है। भाषा या भाषण संबंधित असामान्यताओं वाले बच्चों को समय रहते ध्यान देना चाहिए। बच्चे में कभी-कभी बहरापन हल्का तो कभी ज्यादा हो सकता है।

विकास में देरी और बौद्धिक अक्षमता : बच्चे की बोलने की देरी विकास में बाधा बनता है। यदि यह देरी बनी रहती है तो बच्चे बौद्धिक अक्षमता के शिकार हो सकते हैं। यहां तक ​​कि ज्यादा बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चे आमतौर पर कम से कम भाषा सीख पाते हैं।

ध्यान में कमी : ऑटिज्म को दो तरह से परिभाषित किया जा सकता है। सामाजिक गतिविधि में कमी और जरूरत से ज्यादा प्रतिबंधित व्यवहार। शोध में पता चला है कि ऑटिज्म की एक वजह बोलने में देरी या भाषा में कौशल की कमी हो सकती है। भाषा में देरी वाले बच्चों के मूल्यांकन में आत्मकेंद्रित के निदान पर विचार किया जाना चाहिए।

बच्चे साफ और पूरा कब बोलने लगते हैं जानने के लिए अंत तक पढ़ें।
बच्चे साफ और पूरा कब बोलते है?

अमूमन 2 से 4 साल की उम्र के बीच बच्चे अपना शब्दकोष और व्याकरण कौशल का निर्माण करने लगते हैं। हालांकि प्रत्येक बच्चे में विकास का तरीका अलग-अलग हो सकता है। यह आमतौर पर उनको दिए जाने वाले माहौल और अनुभवों के आधार पर काम करता है। माना जाता है कि स्कूली उम्र तक बच्चे भाषा पर महारत हासिल कर लेता है, लेकिन कभी-कभी 8 वर्ष की उम्र तक भी बच्चा अपरिपक्वता दिखा सकता है (5)।

बच्चे में हुए हर विकास माता-पिता के लिए रोमांचक होता है। जब बच्चा अपनी तोतली जबान से मां या पापा बोलता है तो इसकी खुशी पैरंट्स के चेहरे पर देखी जा सकती है। बच्चा अगर उम्र के हिसाब से बोलने में असमर्थता दिखा रहा है तो चिंतिंत होने के बजाए, उसे बोलने की प्रैक्टिस कराएं। अगर ज्यादा परेशानी दिख रही है तो किसी बाल विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। बच्चों से जुड़ीं दूसरे आर्टिकल को पढ़ने के लिए जु़ड़े रेह मॉमजंक्श के वेबसाइट से।

solved 5
wordpress 1 year ago 5 Answer
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