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नवजात शिशु का वजन बढ़ाने में मदद करेंगी ये TIPS
सेहतमंद बच्चे की चाहत हर पेरेंट्स को होती है। पर, कई बार समय से पूर्व प्रसव होने के कारण बच्चे की सेहत को लेकर चिंता बढ़ जाती है। अगर आपने या आपके किसी नजदीकी महिला ने प्री-मेच्योर बच्चे को जन्म दिया...
सेहतमंद बच्चे की चाहत हर पेरेंट्स को होती है। पर, कई बार समय से पूर्व प्रसव होने के कारण बच्चे की सेहत को लेकर चिंता बढ़ जाती है। अगर आपने या आपके किसी नजदीकी महिला ने प्री-मेच्योर बच्चे को जन्म दिया है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। थोड़ी-सी सावधानी बरत कर और डॉक्टर के संपर्क में रहकर आप अपने बच्चे को भी सेहतमंद बना सकती हैं।
आमतौर पर जन्म के समय सामान्य बच्चे का वजन ढाई किलो से लेकर साढ़े तीन किलो तक होता है, लेकिन प्री-मेच्योर बच्चे का वजन दो किलो या उससे कम भी हो सकता है। ऐसे बच्चे को डॉक्टर की निगरानी और विशेष देखभाल की जरूरत होती है। उन्हें जन्म के लगभग दो सप्ताह बाद ही अस्पताल से घर ले जाने की इजाजत मिलती है। डॉक्टरों की देख-रेख में बच्चा सेहतमंद हो जाता है।
क्यों जरूरी है वजन का ठीक होना?
कम वजन वाले बच्चे को कई तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शरीर में वसा की कमी के कारण ऐसे बच्चे के लिए अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखना मुश्किल होता है। जन्म के पहले वर्ष में ही कम वजन वाले बच्चों की अचानक मृत्यु का खतरा भी ज्यादा होता है। अगर ध्यान न दिया जाए तो 90 प्रतिशत ऐसे बच्चों की मृत्यु 6 महीने में ही हो जाती है। फेफड़ों का सही तरीके से विकास ना हो पाने के कारण प्री मेच्योर और कम वजन के बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। ऐसे बच्चों को संक्रमण का बहुत ज्यादा खतरा रहता है। ऐसे बच्चों को पेट से जुड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। फेफड़ों का सही तरीके से विकास नहीं होने के कारण ऐसे बच्चों को दूध पीने में भी परेशानी होती है, जिसके कारण भी उनका वजन नहीं बढ़ पाता है।
इन्हें चाहिए खास देखभाल
कम वजन वाले बच्चे को खास देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि ऐसे बच्चे की रोग प्रतिरोधी क्षमता बहुत कम होती है। कमजोर रोग प्रतिरोधी क्षमता के कारण उन्हें अलग-अलग तरह की संक्रामक बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है। अगर बच्चा किसी संक्रामक बीमारी से ग्रसित हो जाये तो स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। इसी वजह से बच्चे को जन्म के बाद अतिरिक्त देखभाल के लिए अस्पताल में ही रखा जाता है। अस्पताल में विशेषज्ञों द्वारा जरूरी टेस्ट किए जाते हैं, जिससे यह पता चल सके कि बच्चे को किसी किस्म का खतरा तो नहीं है। जब बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाती है और संक्रमण का खतरा कम हो जाता है, तभी उन्हें घर भेजा जाता है।
मां का दूध है जरूरी
बच्चे के समुचित विकास के लिए जन्म के 6 महीने तक मां का दूध बेहद जरूरी है, लेकिन कम वजन वाले बच्चे को मां का दूध पीने में परेशानी होती है। डॉक्टरों का मानना है कि अगर आपके बच्चे का वजन डेढ़ किलो से ज्यादा है, तो आप कोशिश करें कि वह मां का दूध पिए। इसके लिए आपको थोड़ा धैर्य रखना होगा। बच्चे को बार-बार अपना दूध पिलाने की कोशिश करनी होगी। एक बार बच्चा जब दूध पीना सीख जाएगा तो वो आसानी से दूध पीने लगेगा। अगर बच्चा आपकी सारी कोशिशों के बावजूद ब्रेस्ट फीडिंग नहीं कर रहा है, तो मां के दूध को अच्छी तरह से साफ किए और उबले कप में निकालकर बच्चे को चम्मच या रुई की सहायता से पिलाएं। अगर चम्मच से दूध पिलाने में दिक्कत हो रही है, तो बच्चे को दूध पिलाने के लिए खासतौर से प्री मेच्योर बच्चों के लिए बनी फीडिंग बोतल का इस्तेमाल करें। जब तक बच्चे का वजन सामान्य न हो जाए, उसे हर दो घंटे में दूध पिलाती रहें।
तापमान ऐसे रखें नियंत्रित
कम वजन वाले बच्चे की देखभाल में सबसे बड़ी चुनौती आती है, उसके तापमान को नियंत्रित रखने की। अगर शरीर का तापमान नियंत्रित न हो तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि बच्चे के शरीर के तापमान को कृत्रिम तरीकों से संतुलित किया जाए:
वजन बढ़ाने में ये भी हैं कारगर
जन्म के बाद बच्चे को मां के संपर्क में रखा जाए। मां की त्वचा के स्पर्श से बच्चे के शरीर का तापमान संतुलित रहेगा।
नवजात बच्चे और मां दोनों को मौसम के अनुकूल कपड़े से ढककर रखा जाए। इसके लिए गर्मियों में सूती और सर्दियों में ऊनी कपड़ों का इस्तेमाल करें।
बच्चे को ऐसे कमरे में ना रखें जहां खिड़कियां और दरवाजे खुले हों।
जिस कमरे में बच्चे को रखा जाए, वह गर्म होना चाहिए।
बिना डॉक्टर की सलाह के बच्चे को नहलाएं नहीं।
इस बात का खासतौर पर ध्यान रखें कि बच्चे का सिर ढका हो।
बच्चे को बिना कपड़ों के थोड़ी देर भी न रखें।
करें कंगारू केयर
अपने प्री-मेच्योर बच्चे की सेहत दुरुस्त करने के लिए आप कंगारू केयर अपना सकती हैं। इस तरीके में हर समय बच्चे का संपर्क मां की त्वचा से रहता है, जिसकी वजह से उसके शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है। देखभाल के इस तरीके में बच्चे को स्किन-टू-स्किन टच देना होता है। सोते वक्त बच्चे को अपने पेट के ऊपर सुलाएं। मां के अलावा परिवार का अन्य सदस्य भी इसमें मां की मदद कर सकता है।
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